मंगलवार, 31 अगस्त 2010

प्रभात खबर को रिपोर्टरों व सब एडिटरों की जरूरत


बिहार-झारखंड के प्रमुख हिंदी दैनिक प्रभात खबर को युवा पत्रकारों की जरूरत है. फील्ड के लिए रिपोर्टरों की जरूरत है तो डेस्क के लिए सब एडिटरों की. सात दिन के भीतर आवेदन मांगा गया है. पूरी जानकारी इस विज्ञापन के जरिए आपको मिल सकती है. अगर आप इस पैमाने पर खुद को फिट पाते हैं तो तुरंत आवेदन करें और देश के इस प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान के हिस्से बनें.

पत्रकारिता के नौ सूत्र

हिमांशु शेखर
हर देश की पत्रकारिता की अपनी अलग जरूरत होती है। उसी के मुताबिक वहां की पत्रकारिता का तेवर तय होता है और अपनी एक अलग परंपरा बनती है। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो भारत की पत्रकारिता और पश्चिमी देशों की पत्रकारिता में बुनियादी स्तर पर कई फर्क दिखते हैं। भारत को आजाद कराने में यहां की पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। जबकि ऐसा उदाहरण किसी पश्चिमी देश की पत्रकारिता में देखने को नहीं मिलता है। आजादी का मकसद सामने होने की वजह से यहां की पत्रकारिता में एक अलग तरह का तेवर विकसित हुआ। पर समय के साथ यहां की पत्रकारिता की प्राथमिकताएं बदल गईं और काफी भटकाव आया। पश्चिमी देशों की पत्रकारिता भी बदली लेकिन वहां जो बदलाव हुए उसमें बुनियादी स्तर पर भारत जैसा बदलाव नहीं आया।
इन बदलावों के बावजूद अभी भी हर देश की पत्रकारिता को एक तरह का नहीं कहा जा सकता है। पर इस बात पर दुनिया भर में आम सहमति दिखती है कि दुनिया भर में पत्रकारिता के क्षेत्र में गिरावट आई है। इस गिरावट को दूर करने के लिए हर जगह अपने-अपने यहां की जरूरत के हिसाब से रास्ते सुझाए जा रहे हैं। हालांकि, कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हर जगह पत्रकारिता की कसौटी बनाया जा सकता है। ऐसे ही नौ बातों को अमेरिका की ‘कमेटी आॅफ कंसर्डं जर्नलिस्ट’ ने सामने रखा है।
बात को आगे बढ़ाने से पहले इस कमेटी के बारे में बुनियादी जानकारी जरूरी है। कंसर्डं के लिए हिंदी में चिंतित शब्द का प्रयोग होता है। इस लिहाज से कहा जाए तो कमेटी ऑफ़ कंसर्डं जर्नलिस्ट वैसे पत्रकारों, प्रकाशकों, मीडिया मालिकों और पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े लोगांे की समिति है जो पत्रकारिता के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पत्रकारिता के भविष्य को सुरक्षित बनाए रखने के मकसद से यह समिति अपने तईं इस दिशा में प्रयासरत रहती है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग पत्रकारिता को अन्य पेशों की तरह न समझें। बल्कि एक खास तरह की सामाजिक जिम्मेदारी को निबाहते हुए पत्रकार काम करें। इस समिति की नींव 1997 में रखी गई थी। उस दिन हावर्ड फैकल्टी क्लब में पचीस पत्रकार एकत्रित हुए थे। इसमें कुछ चोटी के संपादक थे तो कुछ रेडियो और टेलीविजन के जाने-माने चेहरे। इन पचीस लोगों में पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण लोग और कुछ बड़े लेखक भी शामिल थे। वहां मौजूद सारे लोगों में एक समानता थी। सभी इस बात पर सहमत थे कि पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ गंभीर खामियां आ गई हैं। वे इस बात से भी डरे हुए थे कि पत्रकारिता जनता के हितों का पोषण करने के बजाए कहीं न कहीं जनहित को नुकसान पहंुचा रही है। सब इस बात पर भी सहमत थे कि ऐसी स्थिति में पत्रकारिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निबाहते हुए कुछ न कुछ किया जाना चाहिए।
इसी बात को ध्याम में रखकर ‘कमेटी ऑफ़ कंसर्डं जर्नलिस्ट’ का गठन किया गया। गठन के बाद इस समिति ने दो साल तक पत्रकारों और लोगों के बीच लगातार काम किया। समिति ने इक्कीस गोष्ठियों का आयोजन किया। इसमें तीन हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा इन गोष्ठियों में गंभीरता से काम कर रहे तीन सौ से ज्यादा पत्रकारों की भी भागीदारी रही। समिति ने विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को भी अपने साथ जोड़ा। शोधार्थियों ने सौ से ज्यादा पत्रकारों से पत्रकारिता के मूल्यों पर आधारित लंबे साक्षात्कार किए। पत्रकारिता के सिद्धांतों पर आधारित दो सर्वेक्षण भी इस समिति ने किया। समिति ने उन पत्रकारों के पत्रकारिता जीवन का अध्ययन भी किया जिनसे समिति ने बातचीत की थी। इसके जरिए उन पत्रकारों की प्राथमिकता के बारे में जानकारी जुटाई गई जिनसे बातचीत करके समिति कुछ अहम नतीजे पर पहुंचने वाली थी। दो साल तक कठोर परिश्रम करने और समाज के अलग-अलग हिस्सों के लोगों के अनुभवों को सहेजने के बाद समिति ने एक किताब प्रकाशित की। इस किताब का नाम है- एलीमेंट ऑफ़ जर्नलिज्म। इस किताब को लिखा बिल कोवाच और टॉम रोसेंशियल ने। इसी किताब में समिति ने पत्रकारिता के बुनियादी तत्व के तौर पर नौ बातों को सामने रखा। जिसकी कसौटी पर दुनिया के हर देश की पत्रकारिता को कस कर देखने से कई बातें खुद ब खुद स्पष्ट होंगी।
समिति ने अपने अध्ययन और शोध के बाद इस बात को स्थापित किया है कि सत्य को सामने लाना पत्रकार का दायित्व है। कहा जा सकता है कि यह तो पत्रकारिता के पारंपरिक बुनियादी सिद्धांतों में शामिल रहा ही है। पर यहां सवाल उठता है कि इसका कितना पालन किया जा रहा है? इस कसौटी पर भारत की पत्रकारिता को कस कर देखा जाए तो हालात का अंदाजा सहज ही लग जाता है। अभी की पत्रकारिता में अपनी-अपनी सुविधा और स्वार्थ के हिसाब से खबरों को पेश किया जा रहा है। एक ही घटना को अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया जाना भी इस बात को प्रमाणित करता है कि सत्य को सामने लाने की प्राथमिकता से मुंह मोड़ा जा रहा है। ऐसा इसलिए भी लगता है कि घटना से जुड़े तथ्य तो एक ही रहते हैं लेकिन इसकी प्रस्तुति अपने-अपने संस्थान की जरूरतों और अपनी निजी हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। पिछले साल जामिया एनकाउंटर बहुत चर्चा में रहा था। इस एनकाउंटर की रिपोर्टिंग की बाबत आई एक रपट में यह बात उजागर हुई कि तथ्यों को लेकर भी अलग-अलग मीडिया संस्थान अपनी सुविधा के अनुसार रिपोर्टिंग करते हैं। जब एक ही घटना की रिपोर्टिंग कई तरह से होगी, वो भी अलग-अलग तथ्यों के साथ तो इस बात को तो समझा ही जा सकता है कि सच कहीं पीछे छूट जाएगा। दुर्भाग्य से  ही सही लेकिन ऐसा हो रहा है।  
समिति ने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर दूसरी बात यह स्थापित की कि पत्रकार को सबसे पहले जनता के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। इस कसौटी पर देखा जाए तो अपने यहां की पत्रकारिता में भी जनता के प्रति निष्ठा का घोर अभाव दिखता है। अभी के दौर में एक पत्रकार को किसी मीडिया संस्थान में कदम रखते हुए यह समझाया जाता है कि आप किसी मिशन भावना के साथ काम नहीं कर सकते हैं और आप एक नौकरी कर रहे हैं। इसलिए स्वभाविक तौर पर आपकी जिम्मेदारी अपने नियोक्ता के प्रति है। इसके लिए तर्क यह दिया जाता है कि आपकी पगार मीडिया मालिक देते हैं इसलिए उनकी मर्जी के मुताबिक काम करना ही इस  दौर की पत्रकारिता है। यहां इस बात को समझना आवश्यक है कि अगर मालिक की प्रतिबद्धता भी पत्रकारिता के प्रति है तब तो हालात सामान्य रहेंगे। पर आज इस बात को भी देखना होगा कि मीडिया में लगने वाले पैसे का चरित्र का किस तेजी के साथ बदला है। जब अपराधियों और नेताओं के पैसे से मीडिया घराने स्थापित होंगे तो स्वाभाविक तौर पर उनकी प्राथमिकताएं अलग होंगी। इसी के हिसाब से उन संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों की जवाबदेही तय होगी। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो हिंदुस्तान में मुख्यधारा की पत्रकारिता में गिने-चुने संस्थान ही ऐसे दिखते हैं कि जहां के पत्रकारों के लिए जनता के प्रति निष्ठावान होने की थोड़ी-बहुत संभावना है।
समिति के मुताबिक खबर तैयार करने के लिए मिलने वाली सूचनाओं की पुष्टि में अनुशासन को बनाए रखना पत्रकारिता का एक अहम तत्व है। इस आधार पर अगर देखा जाए तो पुष्टि की परंपरा ही गायब होती जा रही  है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो बीते साल मुंबई में हुए हमले के मीडिया कवरेज के दौरान देखने को मिला। एक खबरिया चैनल ने खुद को आतंकवादी कहने वाले एक व्यक्ति से फोन पर हुई बातचीत का सीधा प्रसारण कर दिया। अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या वह व्यक्ति सचमुच उस आतंकवादी संगठन से संबद्ध था या फिर वह मीडिया संगठन का इस्तेमाल कर रहा था। जिस समाचार संगठन ने उस साक्षात्कार ने उस इंटरव्यू को प्रसारित किया क्या उसने इस बात की पुष्टि की थी कि वह व्यक्ति मुंबई हमले के जिम्मेवार आतंकवादी संगठन से संबंध रखता है। निश्चित तौर ऐसा नहीं किया गया था। बजाहिर, यहां सूचना के स्रोत की पुष्टि में अपेक्षित अनुशासन की उपेक्षा की गई। ऐसे कई मामले भारतीय मीडिया में समय-समय पर देखे जा सकते हैं। हालांकि, आतंकवादी का इंटरव्यू प्रसारित करने के मामले में एक अहम सवाल तो यह भी है कि क्या किसी आतंकवादी को अपनी बात को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए मीडिया का एक मजबूत मंच देना सही है? ज्यादातर लोग इस सवाल के जवाब में नकारात्मक जवाब ही देंगे।
समिति ने कहा है कि पत्रकारिता करने वालों को वैसे लोगों के प्रभाव से खुद को स्वतंत्र रखना चाहिए जिन्हें वे कवर करते हों। इस कसौटी पर भी अगर देखा जाए तो भारत की पत्रकारिता के समक्ष यह एक बड़ा संकट दिखता है। अपने निजी संबंधों के आधार पर खबर लिखने की कुप्रथा चल पड़ी है। कई ऐसे मामले उजागर हुए हैं जिसमें यह देखा गया है कि निहित स्वार्थ के लिए खबर लिखी गई हो। कई बार वैसी ही पत्रकारिता होती दिखती है जिस तरह की पत्रकारिता सूचना देने वाले चाहते हैं। राजनीति और अपराध की रिपोर्टिंग करते वक्त यह समस्या और भी बढ़ जाती है। राजनीति के मामले में नेता जो जानकारी देते हैं उसी को इस तरह से पेश किय जाता है जैसे असली खबर यही हो। नेता कब मीडिया का इस्तेमाल करने लगते हैं, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं होता है। अपराध की रिपोर्टिंग करते वक्त जो जानकारी पुलिस देती है उसी के प्रभाव में आकर अपराध की पत्रकारिता होने लगती है। पुलिस अपने द्वारा की गई हत्या को एनकाउंटर बताती है और ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि मीडया उसे एनकाउंटर के तौर पर ही प्रस्तुत करती है।
समिति इस नतीजे पर भी पहुंची कि पत्रकारिता को सत्ता की स्वतंत्र निगरानी करने वाली व्यवस्था के तौर पर काम करना चाहिए। इस बिंदु पर सोचने के बाद यह पता चलता है कि जब पत्रकार सत्ता से नजदीकी बढ़ाने के लोभ का संवरण नहीं कर पाता है तो पत्रकारिता कहीं पीछे रह जाती है। भारत की पत्रकारिता के बारे में एक बार किसी बड़े विदेशी पत्रकार ने कहा था कि यहां जो भी अच्छे पत्रकार होते हैं उन्हें राज्य सभा भेजकर उनकी धार को कुंद कर दिया जाता है। राज्य सभा पहुंच कर अपनी पत्रकारिता की धार को कुंद करने वाले पत्रकारों के नाम याद करने में यहां की पत्रकारिता को जानने-समझने वालों को दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ेगा। ऐसे पत्रकार भी अक्सर मिल जाते हैं जो यह बताने में बेहद गर्व का अनुभव करते हैं कि उनके संबंध फलां नेता के साथ या फलां उद्योगपति के साथ बहुत अच्छे हैं। यही संबंध उन पत्रकारों से पत्रकारिता के बजाए जनसंपर्क का कार्य करवाने लगता है और उन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता है। जब यह पता चलता है तब तक वे उसमें इतना सुख और सुविधाएं पाने लगते हैं कि उसे ये समय के नाम पर सही ठहराते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। 
समिति अपने अध्ययन के आधार पर इस नतीजे पर पहुंची है कि पत्रकारिता को जन आलोचना के लिए एक मंच मुहैया कराना चाहिए। इसकी व्याख्या इस तरह से की जा सकती है कि जिस मसले पर जनता के बीच प्रतिक्रया स्वभाविक तौर पर उत्पन्न हो उसके अभिव्यक्ति का जरिया पत्रकारिता को बनना चाहिए। लेकिन आज कल ऐसा हो नहीं रहा है। इसमें मीडिया घराने उन सभी बातों को प्रमुखता से उठाते हैं जिन्हें वे अपने व्यावसायिक हितों के पोषण के लिए उपयुक्त समझते हैं। उनके लिए जनता के स्वाभाविक मसले को उठाना समय और जगह की बरबादी करना है। ये सब होता है जनता की पसंद के नाम पर। जो भी परोसा जाता है उसके बारे में कहा जाता है कि लोग उसे पसंद करते हैं इसलिए वे उसे प्रकाशित या प्रसारित कर रहे हैं। जबकि विषयों के चयन में सही मायने में जनता की कोई भागीदारी होती ही नहीं है। इसलिए जनता जिस मसले पर व्यवस्था की आलोचना करनी चाहती है वह मसला मीडिया से दूर रह जाता है। इसका असर यह हो रहा है कि वैसे मसले ही मीडिया में प्रमुखता से छाए हुए दिखते हैं या उनकी मात्रा ज्यादा रहती है जो लोगों को रोजमर्रा के कामों में ही उलझाए रखे और उन्हें उस दायरे से बाहर सोचने का मौका ही नहीं दे।
समिति ने पत्रकारिता के अनिवार्य तत्व के तौर पर कहा है कि पत्रकार को इस दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए कि खबर को सार्थक, रोचक और प्रासंगिक बनाया जा सके। इस आधार पर तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि खबर को रोचक और प्रासंगिक बनाने की कोशिश तो यहां की पत्रकारिता में दिखती है लेकिन उसे सार्थक बनाने की दिशा में पहले करते हुए कम से कम मुख्यधारा के मीडिया घराने तो नहीं दिखते। सही मायने में जो संस्थान सार्थक पत्रकारिता कर रहे हैं, वे बड़े सीमित संसाधनों के साथ चलने वाले संस्थान हैं। उनके पास हर वक्त विज्ञापनों का टोटा रहता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अगर पत्रकारिता सार्थक होने लगेगी तो बाजार के लिए अपना हित साधना आसान नहीं रह जाएगा। इसलिए बडे़ मीडिया घराने विज्ञापन और संसाधन के मामले में अमीर होते हैं और सार्थकता के मामले में उनकी अमीरी नजर नहीं आती।
समिति के मुताबिक समाचार को विस्तृत और आनुपातिक होना चाहिए। इस नजरिए से देखा जाए तो इसी बात में खबरों के लिए आवश्यक संतुलन का तत्व भी शामिल है। विस्तार के मामले में अभी जो हालात हैं उन्हें देखते हुए यह तो कहा जा सकता  है कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन बहुत बुरी भी नहीं है। जहां तक संतुलन का सवाल है तो इस मामले में व्यापक सुधार की जरूरत दिखती है। संतुलन में अभाव की वजह से ही आज ज्यादातर मीडिया घरानों  की एक पहचान बन गई है कि फलां मीडिया घराना तो फलां राजनीतिक विचारधारा के आधार पर ही लाइन लेगा। इसे शुभ संकेत तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से यह चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इस मामले में पश्चिमी देशों की मीडिया में तो हालात और भी खराब हैं। अमेरिका में हाल ही हुए चुनाव में तो अखबारों ने तो बाकायदा खास उम्मीदवार का पक्ष घोषित तौर पर लिया।  
आखिर में समिति ने पत्रकारिता के लिए एक अहम तत्व के तौर पर इस बात को शामिल किया है कि पत्रकारों को अपना विवेक इस्तेमाल करने की आजादी हर हाल में होनी ही चाहिए। इस कसौटी की बाबत तो बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि सही मायने में पत्रकारों के पास अपना विवेक इस्तेमाल करने की आजादी होती तो जिन समस्याओं की बात आज की जा रही है, उन पर बात करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

बदलती अखबारी दुनिया और पत्रकारिता की चुनौतियां

विश्वव्यापी मंदी ने जिन कई संस्थानों की चूलें बुरी तरह से हिला डाली हैं, अखबार जगत उनमें से एक है। और व्यापक मंदी की मार विकासशील देशों के छोटे-छोटे अखबारों पर ही नहीं, दि न्यूयॉर्क टाइम्स, बोस्टन ग्लोब तथा लॉस एंजेलीस टाइम्स जसे अमेरिकी अखबारों पर भी पड़ी है। दो बड़े अखबारों : शिकागो ट्रिब्यून तथा लॉस एंजेलीस टाइम्स छापने वाले संस्थान (दि ट्रिब्यून कं.) ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है। खर्चा घटाने को न्यूजर्सी के सबसे बड़े अखबार ने अपने आधे स्टाफ की छॅंटनी कर डाली है, और बाल्टीमोर सन तथा बोस्टन ग्लोब ने विदेशों से अपने संवाद-ब्यूरो हटा लिए हैं। बाजार में न्यूयार्क टाइम्स की कीमत पहले की दशमांश रह गई है, और तमाम कटौतियों के बाद भी वह मेक्िसको के एक बड़े उद्योगपति से लोन मॉंगने को मजबूर हुआ है, ताकि रोाना का कामकाज चलता रहे। कहने को कहा जा सकता है कि इंटरनेट, सर्च इािंनों तथा ब्लॉग साइट्स के युग में मीडिया का कलेवर अब बदलेगा ही। और आज नहीं तो कल हिंदी पट्टी में भी लोगबाग नेट तथा केबल पर ही अखबार पढ़ेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि आज भी इंटरनेट पर 85 प्रतिशत खबरों का स्रेत प्रिंट मीडिया ही है। वजह यह, कि सर्च इािंन गूगल हो अथवा याहू, दुनियाभर में अपने मॅंजे हुए संवाददाताओं की बड़ी फौा तैनात करने की दिशा में अभी किसी इंटरनेट स्रेत ने खर्चा नहीं किया है। और वह कर भी, तो रातोंरात अखबार के कुशल पत्रकारों जसी टीम वह खड़ी नहीं कर सकेंगे। बड़े अखबारों और वरिष्ठ संवाददाताओं से पाठक, नागरिक संगठन या सरकारें भले ही कई मुद्दों पर मतभेद रखें, इसमें शक नहीं कि युद्ध से लेकर बैंकिंग तक के घोटालों, रोमानिया तथा भारत से लेकर श्रीलंका तक में अलोकतांत्रिक घटनाओं तथा लोकतांत्रिक चुनावों और पर्यावरण तथा खाद्यसुरक्षा-स्थिति की बाबत जन-ान तक बारीक जानकारियाँ पहुँचा कर मानवहित में विश्वव्यापी जन-समर्थन जुटाने का जो काम बड़े अखबारों के संवाददाताओं ने दुनियाभर में किया है उसके बिना आज दुनिया में लोकतंत्र और मानवाधिकार काफी हद तक मिट चुके होते। कई लोगों का मानना है कि अखबारों के खासकर भारत के अंग्रेजी अखबारों के क्षय की बड़ी वजह पाठकों की गिरती तादाद है। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं। आज भी अच्छे अखबारों के पाठकों की संख्या कोई कम नहीं, खासकर भारतीय भाषाओं में। लेकिन दिक्कत यह है, कि पाठकों को सबसे सस्ता अखबार देने की होड़ में अखबार दामी विज्ञापनों के बूते अपनी असली लागत से कहीं कम (लगभग 110वीं ) कीमत पर बेचे जाते रहे हैं। और इधर बाजार की मंदी के कारण वह विज्ञापनी प्राणवायु लगातार घटती जा रही है। अब अगर अखबार अपनी असली लागत पर बेचे जाने लगे, तो उसके पाठक निश्चय ही घटने लगेंगे। खबरिया चैनल तथा ब्लॉग एक हद तक खबरों या गॉसिप की भूख मिटा सकते हैं, लेकिन चैनलों की तुलना में अखबारों की कवरा बहुआयामी होती है। उसमें सिर्फ स्टोरी ही नहीं, उसका वरिष्ठ संवाददाताओं तथा संपादकों द्वारा बाकायदा विश्लेषण और उसकी अदृश्य पृष्ठभूमि से जुड़े तमाम तरह के ब्योर और जानकारियाँ भी मौजूद होते हैं। इंटरनेट की भाषायी पाठकों तक अभी वैसी पहुँच भी नहीं बनी है, जसी कि अंग्रेजी पाठकों की। लेकिन इन दिनों बदलाव की जो हवा नई तकनीकी के साथ बह रही है, उसने मोबाइल तथा केबल टी.वी. के जरिए हिन्दी पट्टी में सूचना क्षेत्र में अपनी भारी उपस्थिति तो दर्ज करा ही दी है। यह एक विडंबना ही है, कि जिस वक्त दुनिया के अनेक महत्वपूर्ण अखबारों के जनक और वरिष्ठ पत्रकार, इण्टरनेट और अभूतपूर्व आर्थिक मंदी की दोहरी चुनौतियों से जूझते हुए नई राहें खोज रहे हैं, वहीं हमार देश में (संभवत: पहली बार) लहलहा चले ज्यादातर भाषाई अखबारों को यह गलतफहमी हो गई है, कि लोकतंत्र का यह गोवर्धन जो है, उन्हीं की कानी उंगली पर टिका हुआ है। इसलिए वे कानून से भी ऊपर हैं। ऊपरी तौर से इस भ्रांति की कुछ वजहें हैं। क्योंकि हर जगह से हताश और निराश अनेक नागरिक आज स्वत:स्फूर्त ढंग से मीडिया की शरण में उमड़े चले जा रहे हैं। और यह भी सही है, कि हमार यहाँ अनेक बड़े घोटालों तथा अपराधों का उद्घाटन भी मीडिया ने ही किया है। लेकिन ईमान से देखें तो अपनी व्यापक प्रसार संख्या के बावजूद भाषायी पत्रकारिता का अपना योगदान इन दोनों ही क्षेत्रों में बेहद नगण्य है। दूसरी तरफ ऐसे तमाम उदाहरण आपको वहाँ मिल जाएंगे, जहाँ हिंदी पत्रकारों ने छोटे-बड़े शहरों में मीडिया में खबर देने या छिपाने की अपनी शक्ित के बूते एक माफियानुमा दबदबा बना लिया है। और पैसा या प्रभाववलय पाने को वे अपनी खबरों में पानी मिला रहे हैं। सरकारी नियुक्ितयों, तबादलों और प्रोन्नतियों में बिचौलिया बन कर गरीबों से पैसे भी वे कई जगह वसूल रहे हैं, और भ्रष्ट सत्तारूढ़ मुफ्त में नेताओं को ओबलाक्ष करके उनसे सस्ते या जमीनी और खदानी पट्टे हासिल कर रहे हैं, इसके भी कई चर्चे हैं। चूँकि एक मछली भी पूर तालाब को गंदा कर सकती है, हिन्दी में कई अच्छे पत्र और पत्रकारों की उपस्थिति के बावजूद हमार यहाँ आम जनता के बीच भाषायी पत्रकारों का नाम बार-बार अप्रिय विवादों में उछलने से अब उनकी औसत छवि बहुत उज्वल या आदरयोग्य नहीं है। इधर इंटरनेट पर कुछेक विवादास्पद पत्रकारों ने ब्लाग जगत की राह जा पकड़ी है, जहाँ वे जिहादियों की मुद्रा में रो कीचड़ उछालने वाली ढेरों गैरािम्मेदार और अपुष्ट खबरं छाप कर भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि को और भी आगे बढ़ा रहे हैं। ऊँचे पद पर बैठे वे वरिष्ठ पत्रकार या नागरिक उनके प्रिय शिकार हैं, जिन पर हमला बोल कर वे अपने क्षुद्र अहं को तो तुष्ट करते ही हैं, दूसरी ओर पाठकों के आगे सीना ठोंक कर कहते हैं कि उन्होंने खोजी पत्रकार होने के नाते निडरता से बड़े-बड़ों पर हल्ला बोल दिया है। यहाँ जिन पर लगातार अनर्गल आक्षेप लगाए जा रहे हों, वे दुविधा से भर जाते हैं, कि वे इस इकतरफा स्थिति का क्या करं? क्या घटिया स्तर के आधारहीन तथ्यों पर लंबे प्रतिवाद जारी करना जरूरी या शोभनीय होगा? पर प्रतिकार न किया, तो शालीन मौन के और भी ऊलजलूल अर्थ निकाले तथा प्रचारित किए जाएंगे। अभी हाल में एक ब्लॉग ने एक महत्वपूर्ण अंग्रेजी खबरिया चैनल की वरिष्ठ महिलाकर्मी के बार में बेहद आपत्तिजनक भाषा और अपुष्ट तथ्यों के बूते एक मुहिम छेड़ दी थी। चैनल ने कानून की मदद से उसको अपनी उसी साइट पर अपनी गलती स्वीकार करने और माफी माँगने पर बाध्य किया। एक अच्छे स्थापित पेशेवर व्यक्ित के लिए अपनी साख पर झूठा बट्टा लगाया जाना, शारीरिक उत्पीड़न से कहीं अधिक यंत्रणादायक हो सकता है। कोई दुर्भावनावश उसकी लगातार यश-हत्या करता रहे, और पकड़े जाने पर अपनी क्षुद्रता या अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता का हवाला देकर आत्मरक्षात्मक तेवर अख्तियार करे, तो क्या उसे हँस कर बरी कर दिया जाए, ताकि वह और भी साखदार लोगों की पगड़ी उछालता फिर? ऐसे क्षणों में हमारा पत्रकार जगत प्राय: अपने लिए किसी आचरण संहिता और अवमानना के दोषी सहकर्मियों पर सख्त कानूनी व्यवस्था का विरोध करता है। पर अगर प्रोफेशनल दुराचरण साबित होने पर एक डॉक्टर या चार्टर्ड अकाउण्टेंट नप सकता है, तो एक गैरािम्मेदार पत्रकार क्यों नहीं? हमारी राय में मीडिया की छवि बिगाड़ने वाली इस तरह की गैरािम्मेदार घटिया पत्रकारिता के खिलाफ ईमानदार और पेशे का आदर करने वाले पत्रकारों का भी आंदोलित होना आवश्यक बन गया है, क्योंकि इसके मूल में किसी पेशे की प्रताड़ना नहीं, पत्रकारिता को एक नाजुक वक्त में सही धंधई पटरी पर लाने की स्वस्थ इच्छा है।

जर्नालिस्ट हब: सदा खुशदिल

जर्नालिस्ट हब: सदा खुशदिल

सदा खुशदिल

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,  कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।  नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,  चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।  मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,  चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।  आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,  कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। __ हरिवंश राय बच्चन..


स्वभाव सदा खुशदिल होना चाहिए। चेहरे पर मुस्कान और आनन्द खिला रहना चाहिए। इससे व्यक्तित्व का विकास होता है। खुशदिल व्यक्ति को सभी लोग मानते हैं। प्रसन्नचित्त और सतत् मुस्कान के साथ-साथ गम्भीरता, विचारशीलता, मर्यादा और प्रसंगशीलता का पुट भी मिला रहना चाहिए।


हमें करुणावश दूसरों के लिए कार्य नहीं करना है  परन्तु मनुष्य की सेवा का भाव होना चाहिए,   क्योंकि मनुष्य ही भगवान शिव का सत्-स्वरुप है।



कुछ समझें सब ओर कुछ, फिरते बेपरवाह।

कर्म जो दुनिया में किये, बनते वही गवाह।।

चैनलों को प्रसारण की अनुमति देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता !

सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि उन्होंने यह ऐलान नहीं किया है कि अब से नए चैनलों को प्रसारण की अनुमति नहीं मिलेगी। बल्कि उनका मंत्रालय सिर्फ यह कोशिश कर रहा है कि चैनलों को प्रसारण की अनुमति देने की प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता रखी जाए।
मंत्रालय ने अपने सचिव द्वारा अक्तूबर 2009 में ट्राई को लिखे पत्र (कि वह नए मानदंड तय करने के लिए मंत्रलय को सुझाव दे) की अवधि के बाद के आवेदनों पर गौर करने से मना कर दिया है। जिनका इस अवधि से पहले आवेदन आया है, उन पर जरूरी प्रक्रिया जारी है।
सोनी ने बताया कि ट्राई संभवत: मार्च तक अपने सुझाव मंत्रालय को दे देगा। सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने सभी केन्द्रीय मंत्रालयों से कहा है कि वे खुद ही अपने विज्ञापन जारी करने के बजाए उसे डीएवीपी के जरिए ही मीडिया में जारी करें। अंबिका सोनी ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा कि मंत्रालयों से कहा है कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो यदाकदा गलतियां होती रहेंगी और इसके लिए उनके मंत्रालय का विभाग डीएवीपी (श्रव्य एवं दृश्य प्रचार विभाग) जिम्मेदार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कैबिनेट सचिव ने भी इस आशय के निर्देश सभी मंत्रालयों के दिए हैं और यह भी कहा है कि संबंधित मंत्रलय विज्ञापनों के साथ यह निर्देश न भेजें कि किन किन अखबारों या चैनलों पर वे विज्ञापन प्रकाशित/प्रसारित हों।
सोनी ने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि प्रसारण विधेयक का एक लगभग सर्वस्वीकृत मसौदा संसद के आगामी सत्र के दौरान अप्रैल के आखिर से लेकर मई तक संसद में चर्चा के लिए पेश कर दिया जाए। सोनी ने पत्रकारों के लिए 70-80 लाख रुपये सालाना क्षमता वाले एक कोष के गठन की बात की और कहा कि इससे संबंधित दिशानिर्देश बनते ही इसकी घोषणा की जाए। यह आकस्मिक विपत्ति या आकस्मिक निधन के शिकार पत्रकारों के परिवार वालों की सहायता के लिए होगा।

रविवार, 29 अगस्त 2010

आ रहा है नया न्यूज चैनल- 'न्यूज17'

Saturday, 28 August 2010 17:04 B4M भड़ास4मीडिया

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दिसंबर महीने के लास्ट तक एक नया न्यूज चैनल अवतरित हो जाएगा. 'न्यूज17' नाम से. इसके सीईओ और एडिटर इन चीफ राजेश शर्मा हैं. एडिटोरियल और कंटेंट हेड देखेंगे विवेक अवस्थी. विवेक आईबीएन7, आजतक, जी न्यूज, स्टार न्यूज, दिल्ली आजतक समेत कई मीडिया हाउसों में काम कर चुके हैं. इस चैनल के लाइसेंस के लिए आवेदन किया जा चुका है और मंजूरी की प्रक्रिया में है. लाइसेंस मिलने के तुरंत बाद भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इस चैनल का टारगेट व्यूवर युवाओं को रखा गया है. यह नेशनल न्यूज चैनल होगा.
चैनल प्रबंधन का दावा है कि डराने धमकाने और सनसनी मचाने वाली खबरें इस चैनल पर नहीं होंगी. चैनल का कामकाज बिलकुल ट्रांसपैरेंट रहेगा. चैनल प्रबंधन ने चैनल लांचिंग के संबंध में एक विज्ञप्ति जारी की है, जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है. इस विज्ञप्ति में चैनल के संबंध में अन्य कई जरूरी जानकारियां हैं.

'NEWS 17' News Channel to be launched soon

राजेश शर्मा
राजेश शर्मा
A new news channel, NEWS 17 is all set to be launched sometime later this year. Rajesh Sharma, Vice President with Total TV, who left organization recently has planned  to launch NEWS 17 National News Channel with Sangeet  audio company promoted by Mr. Amit Vaid and Mr Balkishan Rathi. News 17 will be joint venture of Network 17 Media (P) Ltd promoted by Rajesh Sharma and Sangeet Audio Ltd.
The licence of News 17  is already in proicess with the Ministry of Information and Broadcasting and is expected to be with the proprietors soon. Infrastructure and recruitment process for News 17 will also be starting very soon. Rajesh Sharma said it NEWS 17 will be the news channel with difference where viewers will get complete package of news and infotainment in a totally new avtaar.
Amit Vaid said that keeping in mind that youngsters at present stay away from hard news channels, the aim of NEWS 17 be to break this trend. He said that the aim of the channel is to target youth and so it will be channel for ‘youngistan’.
The channel has roped in Vivek Avasthi as its Editorial and Content Head. Vivek Avasthi has been in print and electronic media for over 19 years. He has earlier worked with Aaj Tak, Zee News, Star News, Dilli Aaj Tak and IBN7 apart from other media organisations.

यह 'इमोशनल अत्याचार' है या सेक्स अत्याचार!

Saturday, 28 August 2010 18:09 मीनाक्षी शर्मा भड़ास4मीडिया -

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आजकल 'बिंदास टीवी' पर प्रसारित कार्यक्रम 'इनोशनल अत्याचार' अश्लीलता का अखाड़ा बना हुआ है. विशेषकर युवा वर्ग, जो कि खुद इस कार्यक्रम के केंद्र में है, इस प्रोग्राम को लेकर काफी उत्सुक दिखता है. क्या यह कार्यक्रम सच में किसी पर हुए 'इमोशनल अत्याचार' को दिखाता है? प्रोग्राम को किसी भी दृष्टिकोण से देखकर ऐसा तो नजर बिल्कुल नही आता, इसे देखकर तो यही लगता है कि यह केवल सेक्स की बात ही दर्शकों को दिखाता है. हर एपिसोड में एक लड़का और लड़की केवल किस करते या सेक्स की बातें ही करते नजर आते हैं. भावानाएँ तो कहीं भी नजर नहीं आती है?
क्या आज के युवा इतने बेवकूफ हैं कि एक दो बार मिली किसी भी लड़की या लड़के से बस सेक्स के बारे में ही बात करते हैं. और कोई भी लड़का किसी भी लड़की से 4-5 तमाचे खाने के बाद भी हँसता रहता है, क्या सच में ऐसा होता है?  हम क्या दिखा रहे हैं टीवी पर युवाओं को, अगर यही दिखाना है तो इसका नाम बदल देना चाहिए. कम से कम इमोशन के नाम पर सेक्स की बातें तो नहीं देखने को मिलेगी, और अगर यह कार्यक्रम इसी नाम से दिखाना है तो चैनेल पर कम से कम इसके प्रसारण का समय तो बदल ही देना चाहिए. देर रात इसे दिखा सकते हैं. कम से कम किशोर बच्चे तो इसे देखने से बचेंगे.
कार्यक्रम के निर्माता का कहना है कि आज के युवा बहुत ही प्रैक्टिकल व पाजिटिव हैं. उनको अपनी किसी भी भावना को दिखाने में किसी भी तरह की कोई शर्म नही आती. और उन्हें सच कहने में किसी भी प्रकार की कोई शर्म नही आती है. 'इमोशनल अत्याचार' का सीजन टू आरम्भ हो चुका है और पहले ही एपिसोड के बाद इस चैनेल की लोकप्रियता और भी बढ गयी है. क्या यह सब केवल अपने चैनेल की लोकप्रियता बढाने के लिए ही है. कार्यक्रम के होस्ट प्रवेश राना व लड़कियों के बीच भी कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन्हें अनजान लोग आपस में शायद नहीं कर सकते हैं. लड़कियां भी ऐसी-ऐसी बातें व गाली देती हैं जिनको छिपाने के लिए बीप की बार बार आवाजे आती हैं. क्या यह सच में इमोशनल अत्याचार है या सेक्स अत्याचार?

शनिवार, 21 अगस्त 2010

जय हो बठिंडा के पत्रकार बंधुओं की.........

त्रकार बंधुओं खासकर बठिंडा प्रेस क्लब से जुडे़ समय के साथ बदलते पत्रकार बंधुओं मैं एक बार फिर आपसे मुखातिब हूं। काफी समय तक इस ब्लाग में कुछ लिख नहीं सका लेकिन अब लगातार लेख आप तक पहुंचाने की कोशिश करुगा। बुरा समय हर किसी पर आता है भगवान न करे आप पर भी कभी बिना बुलाई मुशिबत आए। अगर आपको लगता है कि कोई आपके खिलाफ साजिश रच रहा है और कभी भी आप पर कोई समस्या आ सकती है तो भूले से भी बठिंडा प्रेस के बंधुओं से किसी तरह की उम्मीद न करना क्योंकि इन्हें आजकल बठिंडा प्रेस क्लब की इमारत बनाने की चिंता ज्यादा है और पत्रकार पर अगर किसी तरह की मुशि्बत आ जाए तो इनके पास आपकी सहायता करने का समय नहीं है। मैं यहां इस तरह की चरचा क्यों कर रहा हूं आप भी सोच रहे होंगे पर यह जरूरी है क्योंकि बठिंडा प्रेस क्लब किसी की नीजि जायदाद नहीं है जो अपने हिसाब से इसे चलाएगा, प्रेस क्लब का काम क्या है पहले यह पत्रकार बंधु स्पष्ट करे जो इस एसोएशन का संचालक करने का खोखा दावा कर रहे हैं, गिनती के चार बडे़ अखबार के प्रतिनिधि एक मंच में इकट्ठा हो गए तो क्लब नहीं बनती है, इसके लिए तन और मन भी जरूरी होता है। मैं हरिदत्त जोशी पत्रकारिता के क्षेत्र में १७ साल से काम कर रहा हूं बठिंडा का कोई नवेला ही पत्रकार होगा जो मुझे नहीं जानता है। पूरा जीवन पत्रकारिता और इसके सिद्वातों के लिए निकाल दी, शहर में कोई सख्श कह दे कि मैने काली पत्रकारिता को प्रोत्साहन दिया या फिर किसी से फूटी कोडी़ ली हो, मेरा यही कसूर है कि मैने कभी काली पत्रकारिता करने वालो का साथ नहीं दिया, रात के समय उनकी महफिलों में जाकर हंगामा नहीं किया या फिर शराब पीकर अपनी जेब दूसरो के लिए खाली नहीं की है। भाई लोगों मैं दूसरे से अलग हूं और जीवन भर रहूंगा, इसे न तो अाप बदल सकते हैं और न ही मुझ पर पड़ने वाली मुशिकले इस राह तो बदल सकती है। अब मुझसे रंजिश रखने वाले व मेरे कायदो से दुखी लोग मेरे खिलाफ जो चाहे कहे उससे मुझे कोई परवाह नहीं न ही इससे मुझे कोई असर पड़ता है।
अब जहां तक बठिंडा प्रेस क्लब की बात है उसमें मैं इतना जरूर कहूंगा कि वह बिना सिर पैर का संगठन है जो किसी विरष्ठ संवाददाता की समस्या में केवल अपना और प्रशासन का पक्ष सुनता है उसे पत्रकार का पक्ष सुनने और उसकी बात कहने की जरूरत महसूस नहीं होती है। अनुशासन समिति, सदस्यता सिमित बनाकर स्वयं को मजबूत कहने वाले अपने गिरेबान में जरूर झांके, उन्होंने हरिदत्त जोशी प्रकरण में क्या किया? वह कहां तक जायज थे। कल शहर का कोई भी आदमी किसी पत्रकार के दामन में कोई भी दाग लगा देगा और प्रेस क्लब इसे मानकर उसका साथ छोड़ देगी इसका जबाब हर पत्रकार को चाहिए। किसी का दामन साफ नहीं है, मुझ पर तो आरोप ही लगे तो यह मेरा दम था कि मै इसमें अकेले के दम पर साफ सुधरा बाहर निकला, अह प्रेस क्लब का प्रतिनिधित्व कर रहे लोगों की बात करे तो दिल में हाथ रखकर बताए कि वह कितने पाक और साफ है। कई पर तो संगीन अपराध करने तक के आरोप लगे हैं। साहब समय है अभी भी प्रेस क्लब की कारगुजारी सुधार लो, नियम स्पष्ट कर लो ताकि फिर से कोई वरिष्ठ पत्रकार या फिर नए पत्रकार को मेरे जैसी समस्या से दो चार न होना पडे़। मै तो प्रभु की रहम से इस साजिश से बाहर आ गया पर आपका क्या होगा जिनके पास एकथाना प्रभारी तक की सिफारिश नहीं होगी क्योंकि किसी भी अखबार का लाला आरोप लगते ही अखबार से बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं लगाता है। जय हो बठिंडा के पत्रकार बंधुओं की.........
आपका अपना---हरिदत्त जोशी

भास्कर समूह को 6 ऐसे मीडिया प्रोफेशनल्स की जरूरत है जो स्टेट एडिटोरियल कोआर्डिनटेर के बतौर काम कर सकें.

भास्कर समूह को 6 ऐसे मीडिया प्रोफेशनल्स की जरूरत है जो स्टेट एडिटोरियल कोआर्डिनटेर के बतौर काम कर सकें. ये सभी छह लोग भोपाल में पदस्थ होंगे. ये नेशनल एडिटोरियल कोआर्डिनेटर को रिपोर्ट करेंगे. भास्कर समूह ने इन पदों पर भर्ती के लिए एक जॉब कंसल्टेंसी कंपनी की सेवाएं ली हैं. कंसल्टेंसी कंपनी ने इस जाब प्रोफाइल से मैच करने वाले कई मीडिया प्रोफेशनल्स को मेल भेजकर सीवी भेजने को कहा है. इस मेल में जो कुछ कहा गया है, उसे आप नीचे पढ़ सकते हैं...
Dear Candidate
Our client: A leading hindi newspaper has the following immediate requirement :
Position: State Editorial coordinator
location : bhopal
reporting to the national editorial coordinator
no of positions 6
role
Key Job Responsibilities:
1. Should have a good understanding of the editorial function at the state level
2. Periodic evaluation of product on various parameters including benchmarking.
3. Identifying gaps in the given product.
4. Coordinating plans for product improvement
5. Preparing detailed project plans
6. Coordinating execution and monitoring progress against the plans.
7. Escalating problem areas to the appropriate levels for resolution.
8. Ensure adherence to timelines and costs wherever applicable.
9. Preparation and analysis of all MIS relating to product and on-going projects.
10. Coordinating resources wherever necessary.
11. Will be responsible for running the complete management function for the State editor at the respective location
12. He will prepare agendas for the meetings and take the follow ups to closure with the relevant stake holders

If interested pls mail a copy of your cv in word format with the following information
-current and expected package
-joining period if selected

regards
xxxxxxxxx
xxxxxxxxxx
mumbai

taja update

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता का फर्जीवाड़ा

 कई पत्रकारों के फर्जी हस्ताक्षर कर हड़पी स्पीकर द्वारा दी गई सरकारी ग्रांट : शिकायत के बाद जिला रजिस्ट्रार ने रद्द की प्रेस करेस्पोंडेंट एसोसिएशन : हरियाणा के जिला झज्जर के बहादुरगढ़ खंड का मामला है. यहां  दैनिक जागरण समाचार पत्र में विशेष संवाददाता (जागरण द्वारा जारी पत्र अप्वाइंटमेंट लेटर नीचे संलग्न है) पद पर कार्यरत इशांत राठी कार्यरत हैं.

उन्होंने शहर के आधा दर्जन से ज्यादा पत्रकारों के फर्जी हस्ताक्षर कर एक एसोसिएशन को पंजीकृत कराया. फिर हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष से 15 हजार रुपए की सरकारी ग्रांट ले ली. इस फर्जीवाड़े का पता जब अन्य पत्रकारों को लगा तो उनके होश उड़ गए. सभी पत्रकारों ने फर्जीवाड़े की शिकायत जिला रजिस्ट्रार से की. रजिस्ट्रार ने जांच के बाद संस्था को रद्द करते हुए पुलिस अधीक्षक से कानूनी कार्रवाई की अनुशंसा की है. दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता इशांत सिंह पुत्र तेजपाल राठी ने 18 अगस्त 2009 को बहादुरगढ़ के पत्रकारों प्रवीण धनखड़ (हरियाणा न्यूज), योगेंद्र सैनी (टोटल टीवी), शील भारद्वाज (अमर उजाला), सुशील वत्स (हरि भूमि), प्रमिला सैनी (साधना टीवी), पंकज रोहिल्ला व आरडी मिश्रा (दैनिक जागरण) के फर्जी हस्ताक्षर कर प्रेस करेस्पोडेंट एसोसिएशन नामक संस्था का पंजीकरण करवाया. इसके बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रघुबीर सिंह कादियान से संस्था को 15 हजार रुपए देने की घोषणा करवा दी. खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय बहादुरगढ़ से संस्था के लिए चेक (नंबर 58030) द्वारा राशि प्राप्त किया.
इशांत ने बीडीपीओ को उपरोक्त चेक प्राप्त करने के लिए किए गए आवेदन पत्र पर चेक प्राप्ति की पावती भी दे रखी है. इस पावती पर भी इशांत के अलावा कमल सिंह, योगेंद्र सैनी, सुशील वत्स व पंकज के फर्जी सह-हस्ताक्षर किए गए हैं. इन सात में से पांच पत्रकारों ने, जो बहादुरगढ़ पत्रकार संघ (रजि संख्या : 06-15बी/710/16.7.08) के सदस्य हैं,  जिला फर्म एवं सोसाइटी रजिस्ट्रार को शपथपत्र दिया. इसमें कहा कि उनके हस्ताक्षर फर्जी हैं. इन पत्रकारों ने स्वयं हाजिर होकर भी बयान दिया कि इस फर्जी संस्था के पंजीकरण में उनके फर्जी दस्तखत किए गए हैं. कई अन्य साक्ष्यों समेत बहादुरगढ़ पत्रकार संघ के महासचिव रवींद्र सिंह राठी व जिला सूचना अधिकार मंच के समन्वयक नरेश जून ने भी हरियाणा के मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव, राज्य चौकसी ब्यूरो के उपमहानिदेशक, जिला उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक व उपमंडल अधिकारी (ना.) से समूचे घोटाले की शिकायत की.
हैरत की बात यह है कि 18 अगस्त 2009 को पंजीकृत होने वाली इस संस्था को हरियाणा विधानसभा के स्पीकर द्वारा 12 अगस्त 2009 को ही ग्रांट मंजूर कर दी गई थी. इस फर्जीवाड़े के सूत्रधार इशांत सिंह के पिता तेजपाल राठी हरियाणा विधानसभा में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर तैनात थे, उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सरकारी धन को हड़पने में अपने पुत्र इशांत सिंह की भरपूर मदद की. इस मामले में कार्रवाई करते हुए जिला फर्म एवं सोसाइटीज रजिस्ट्रार ने पाया कि प्रेस करेस्पोंडेंट एसोसिएशन के आवेदन में किए गए हस्ताक्षरों में और इन पत्रकारों के असली हस्ताक्षरों में दिन-रात की भिन्नता है जो इनकी शिकायत को सही सत्यापित कर रही है. इससे यह प्रतीत होता है कि इशांत सिंह पुत्र तेजपाल राठी ने उपरोक्त संस्था फर्जी ढंग से रजिस्टर करा कर हरियाणा सरकार को गुमराह करने व चूना लगाने का काम किया है. रजिस्ट्रार ने इस फर्जी संस्था को रद्द कर जिला पुलिस अधीक्षक को इस मामले में उचित कानूनी कार्रवाई करने की सिफारिश कर दी. संबंधित दस्तावेज व आदेश नीचे दिए जा रहे हैं.
-रवींद्र सिंह राठी की रिपोर्ट

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

झगड़े में फंसा जम्‍मू से भास्‍कर का प्रकाशन

टाइटिल वेरिफिकेशन और डिक्लयरेशन पर स्टे : भास्कर घराने का झगड़ा डीबी कार्प वालों को भारी पड़ता दिख रहा है. ताजी खबर जम्मू से है. डीबी कॉर्प ने 25 मई, 2010 को जम्‍मू से दैनिक भास्‍कर के प्रकाशन के लिये टाइटल वेरिफिकेशन के लिये आवेदन किया था. जम्‍मू जिला प्रशासन ने 2 जून को आरएनआई से राय मांगी. 9 जून को आरएनआई ने वेरिफिकेशन पर मुहर लगा दी. 15 जून 2010 को डीबी कॉर्प ने जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां डिक्‍लयरेशन फाइल कर दिया.
24 जुलाई से जम्‍मू से अखबार लॉचिंग की खबर बाजार में आ गई.. दैनिक भास्‍कर के को-ऑनर संजय अग्रवाल ने 21 जुलाई को 2010 को जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां अपनी आपत्ति दर्ज कराई. 22 जुलाई को जम्‍मू से प्रकाशन रोकने के लिये टाइटल वेरिफिकेशन एवं डिक्‍लयरेशन के खिलाफ जम्‍मू हाईकोर्ट में रिट पिटीशन फाइल किया. आज जम्‍मू हाईकोर्ट की जस्टिस सुनील हाली की बेंच ने संजय अग्रवाल का डीबी कॉर्प के 9 जून के टाइटल वेरिफिकेशन एवं 15 जून के डिक्‍लयरेशन पर स्‍टे देते हुए जिला प्रशासन जम्‍मू को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए. संजय अग्रवाल ने अपनी रिट पिटीशन में डी बी कॉर्प, जिला प्रशासन जम्‍मू, आरएनआई एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय को पार्टी बनाया था.
संजय अग्रवाल के 22 जुलाई को हाईकोर्ट पहुंचने की खबर जब डी बी कॉर्प के लोगों तक पहुंची तब उन्‍होंने आनन-फानन में वकीलों की सलाह पर दैनिक भास्‍कर का 21 जुलाई का अखबार छापकर उसकी प्रति 23 जुलाई को जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां जमा कराई. 23 जुलाई को जब संजय अग्रवाल जिला प्रशासन के समक्ष हाईकोर्ट के निर्देश की प्रति लेकर पहुंचे उसी समय दैनिक भास्‍कर की ओर से 21 जुलाई का अखबार वहां जमा किया गया. जबकि डीबी कॉर्प 24 जुलाई को जोर-शोर से भास्‍कर के जम्‍मू से प्रकाशन की योजना बना रहा था. हालांकि हाईकोर्ट के फैसले की औपचारिक प्रति सोमवार को मिलेगी.
इसके पूर्व रांची से भी दैनिक भास्‍कर के प्रकाशन की तैयारियों के बीच संजय अग्रवाल ने डीबी कॉर्प के रांची से प्रकाशन के खिलाफ दिल्‍ली हाईकोर्ट से स्‍टे ले रखा है. इसे वैकेट कराने के लिये आठ करोड़ राची में इनवेस्‍टमेंट एवं 400 कर्मचारियों की नियुक्ति का वास्‍ता देकर डी बी कॉर्प की तरफ से कांग्रेस नेता एवं एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी लेकिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने स्‍टे वैकेट न कर 28 जुलाई की तिथि निर्धारित की है.
सौजन्यः-भडा़स फोर मीडिया डाट काम  

अमर उजाला, आगरा में चल रहा है 'सफाई' अभियान

अमर उजाला, आगरा का माहौल भी बेहद गरम है. पिछले दिनों दो लोगों को हटाए जाने और दो को कार्यमुक्ति का नोटिस दिए जाने के बाद अब पता चल रहा है कि कुल छह लोगों को बाहर निकाले जाने की तैयारी है जिसमें सीनियर सब एडिटर और सब एडिटर भी शामिल हैं. खासकर उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो या तो बहुत पुराने हैं या बिलकुल नए. जितने भी ट्रेनी रखे गए थे, उन्हें हटाकर फिर से नए ट्रेनी भर्ती किए जा रहे हैं.
कभी अजय अग्रवाल, फिर अशोक अग्रवाल की यूनिट माने जाने वाली आगरा यूनिट अब पूरी तरह से माहेश्वरी ब्रदर्स के अधीन है. माहेश्वरी ब्रदर्स के खास आदमी के रूप में राजेंद्र त्रिपाठी आगरा में संपादक पद पर तैनात हैं और सफाई अभियान चला रहे हैं. इस अभियान के पीछे मंशा पुराने समय के निष्ठावान लोगों को किनारे लगाना या बाहर करना है और नए मैनेजमेंट के लायल लोगों को बढ़ावा देना व भर्ती करना है. देखना है कि उठापटक का यह दौर कब खत्म होता है.

 अमर उजाला, कानपुर से कई खबरें हैं. दैनिक भास्कर, पटियाला के सीनियर रिपोर्टर संदीप अवस्थी यहां प्रिंसिपल करेस्पांडेंट पद पर ज्वाइन करने वाले हैं. रवींद्र नाथ झा न्यूज एडिटर के रूप में अमर उजाला, कानपुर में दस्तक देने वाले हैं. चर्चा है कि उन्हें अमर उजाला के टैबलायड अखबार कांपैक्ट का प्रभारी बनाया जाएगा.
अभी तक प्रभारी के रूप में महेश शर्मा काम देख रहे हैं. सिटी चीफ के रूप में काम देख रहे कौशल किशोर का प्रादेशिक डेस्क का प्रभारी बनाया गया है. प्रादेशिक डेस्क को दो हिस्से में बांटा गया है. एक हिस्से के प्रभारी जेपी त्रिपाठी बनाए गए हैं और दूसरे हिस्से के प्रभारी की जिम्मेदारी कौशल किशोर को दी गई है. फिलहाल सिटी चीफ की जिम्मेदारी शैलेश अवस्थी को दी गई है. तीन लोगों ने अमर उजाला,  कानपुर से नाता तोड़ लिया है. ये हैं न्यूज एडिटर धीरेंद्र प्रताप सिंह, सीनियर सब एडिटर कुमार विजय और सब एडिटर मनोज सिंह.
मनोज सिंह के बारे में सूचना है कि वे दैनिक जागरण, लखनऊ के साथ जुड़ गए हैं. नाराज होकर इस्तीफा देने वाले सीनियर सब एडिटर विवेक त्रिपाठी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है और फिर से वे अमर उजाला, कानपुर में सक्रिय हो गए हैं. अमर उजाला, कानपुर यूनिट से संबद्ध दो जिलों के ब्यूरो चीफों का भी तबादला किया गया है, फर्रूखाबाद के ब्यूरो चीफ राजीव शुक्ला को हरदोई और हरदोई के ब्यूरो चीफ ब्रजेश शुक्ला को फर्रूखाबाद का ब्यूरो चीफ बनाया गया है. इन तमाम बदलावों, ज्वाइनिंग, गतिविधियों से अमर उजाला कानपुर का माहौल सरगर्म बना हुआ है.
सौजन्यः-भडा़स फोर मीडिया डाट काम  

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

सड़कों पर बेखौफ दौड़ रहे हैं प्रेस लिखे वाहन

-कई लोगों का तो प्रेस और पत्रकारिता से दूर का भी संबंध नहीं
-अपने फायदे केञ् साथ लोगों पर रौब झाड़ने केञ् लिए करते हैं गलत इस्तेमाल 
संजय शर्मा 
बठिंडा। व्यवसायिक फायदा उठाने व लोगों पर रौब झाड़ने के लिए इन दिनों मीडिया के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रेस का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। मोटरसाइकिलों से लेकर कारों में प्रेस लिखकर गाड़ी सड़कों पर आवागमन करती आसानी से दिखाई देते हैं। इसमें ज्यादातर लोग ऐसे है जिनका मीडिया से दूर-दूर तक का कुछ नहीं लेना है लेकिन उन्होंने कार व मोटरसाइकिल में आगे व पीछे बडे़-बडे़ अक्षरों में प्रेस लिखकर लगा रखा है। इसमें कई लोग तो ऐसे है जो मीडिया कर्मी के रिश्तेदार या फिर दोस्तों की श्रेणी या फिर जानपहचान वालों में होते हैं। इस तरह के वाहनों को पुलिस कर्मचारी भी जांच पड़ताल नहीं करते हैं जिससे कई बार उक्त लोग इन वाहनों का इस्तेमाल गैरकानूनी कार्यों के लिए करते हैं। पिछले दिनों प्रेस लिखे कई ऐसे वाहन पुलिस ने पकडे़ हैं जिसमें गैरकानूनी तौर पर दवाईयां या फिर टैक्स चोरी का सामान लादकर लाया जा रहा था। इस मामले में बठिंडा जिले के विभिन्न सामाचार पत्रों के प्रतिनिधि जिला प्रशासन से सख्त कार्रवाई करने की मांग कर चुके हैं लेकिन इसमें आज तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकी है। 
तीन साल पहले पुलिस प्रशासन ने प्रेस लिखे ऐसे वाहनों की जांच पड़ताल करवाने व इन्हें जब्त करने का अभियान शुरू किया था। इसके तहत सभी अखबारों के प्रतिनिधियों से उनके यहां काम करने वाले लोगों की सूचि मांगी गई थी। इसमें पत्रकार का नाम, पता, फोन नंबर के इलावा इस्तेमाल किए जा रहे वाहन का नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस का नंबर मांगा गया था। इस मुहिम में प्रशासन की तरफ से जायज पत्रकारों को एक परिचय पत्र जारी किया जाना था। इस परिचय पत्र के धारक ही अपने वाहनों में प्रेस लिख सकते थे लेकिन यह मुहिम भी प्रशासन पूरी नहीं कर सका और उसने फार्म जमाकर आगे किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। फिलहाल प्रशासन की ढिली नीतियों के कारण सड़कों में बेखौफ दौड़ते प्रेस लिखे वाहन लोगों के साथ पुलिस कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब बने हुए है। इस मामले में चिंताजनक पहलु यह है कि इस तरह के वाहनों से गौरकानूनी कार्यों के साथ असामाजिक तत्व व देश द्रोही तत्वों को संरक्षण मिल सकता है जो किसी भी समय प्रेस के नाम पर किसी अनहोनी घटना को अंजाम दे सकते हैं। इस तरह के तत्वों पर रोक लगाने के लिए प्रशासन को जल्द सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। यहां बताना जरूरी है कि अधितकर वाहन चालक को अपने वाहनों में प्रेस मात्र इसलिए लिखाकर रखते हैं कि किसी चौक व नाके में पुलिस कर्मी उन्हें नहीं रोकेगा व दस्तावेज की मांग नहीं करेगा। इस क्रम में तत्कालीन एसपी सीटी निलाभ किशोर ने एक मुहिम के तहत प्रेस लिखे वाहनों की जांच शुरू की थी तो उसमें पाया गया कि ७० फीसदी लोगों ने अपने वाहनों में प्रेस इसलिए लिखाकर रखा है कि उन्हें कोई पत्रकार जानता है या फिर किसी अखबार व पत्रिका से उन्होंने जानपहचान के आधार पर प्रेस का कार्ड बनवा रखा है जबकि खबरे भेजने या फोटो खीचने जैसे कार्यों से उनका कोई भी लेना देना नहीं होता है। समाज सेवी राकेश नरुला का कहना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अखबार प्रतिनिधियों को भी आगे आना होगा उन्हें ऐसे लोगों को परिचय पत्र जारी करने से गुरेज करना चाहिए जिनका पत्रकारिता से किसी तरह का लेना देना नहीं है व प्रेस लिखकर वह प्रेस का इस्तेमाल करते हैं। वही जिला प्रशासन को भी इस बाबत अखबार प्रतिनिधियों के साथ मिलकर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे इस तरह केञ् गौरखधंधे पर रोक लगे।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

पेड न्यूज और पैसे की हेराफेरी के बारे में दर्जनों जगह भेजी शिकायत

: दैनिक जागरण से चीफ रिपोर्टर पद से इस्तीफा देने वाले राकेश शर्मा ने कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं. उन्होंने दैनिक जागरण पर लगे पेड न्यूज के आरोपों को पुख्ता कर दिया है. सेबी को लिखे अपने पत्र में राकेश ने विस्तार से सारी बातें कहीं हैं जिसे नीचे प्रकाशित किया गया है.
राकेश शर्मा ने जागरण के साथ 10 अप्रैल 2002 से पारी शुरू की. तब उन्हें करनाल में ज्वाइन कराया गया था. 1 मार्च 2005 को उन्हें कुरुक्षेत्र भेज दिया गया. 5 मई 2008 को फरीदाबाद ट्रांसफर हो गया. 26 दिसंबर 2009 को उन्हें ट्रांसफर कर पंजाब के रोपड़ भेज दिया गया. राकेश ने 2 फरवरी 2010 को अपना इस्तीफा सौंप दिया. राकेश शर्मा ने अपने कार्यकाल में दो लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव कवर किए हैं.
बीते लोकसभा -विधानसभा चुनाव में राकेश फरीदाबाद में हुआ करते थे. उससे पहले जो लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव हुए थे, राकेश करनाल में दैनिक जागरण के लिए कार्यरत थे. राकेश ने दैनिक जागरण की जो शिकायत सेबी, चुनाव आयोग, राष्ट्रपति, प्रेस काउंसिल आदि को भेजी है, उसमें काफी कुछ कहा गया है. साथ में उन्होंने पेड न्यूज के रूप में लिए गए पैसे की डिटेल भी भेजी है. सारे दस्तावेज यहां प्रकाशित किए जा रहे हैं. -एडिटर

सौजन्यः-भडा़स4मीडिया डाट काम  

रेटिंग के चक्कर में न्यूज चैनल मन-मस्तिष्क कर रहे हैं दूषित :

 टक पटक कर मार डाला... भाई-बहन का रिश्ता हुआ शर्मसार... ममता हुई कलंकित... इस तरह की सुर्खियां आजकल हर न्यूज चैनल की पहली हेडलाइन होती है। टीवी खोलते ही इस तरह की खबरें देखकर कई बार बुरी तरह से इरीटेशन होता है. मुझे लगता है कि ऐसा केवल मेरे साथ नहीं बल्कि कइयों के साथ होता है. पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण इसकी वैल्यू को समझता हूं. कई बार ऐसे मौके आए जब इस तरह की खबरों को सनसनीखेज बनाने के लिए मीटिंग में माथापच्ची करनी पड़ती थी. दरअसल यह बात इसलिए भी कर रहा हूं कि मुझे अपने एक संपादक की बात याद आ गई।। 
आत्महत्या की एक खबर पर वो सिर्फ इसलिए जोरदार भड़क गए थे कि मेरे सहयोगी रिपोर्टर ने हेडलाइन से लेकर खबर में भी दो-तीन जगह 'सल्फास खाकर युवक ने खुदकुशी की', लिख दी थी. पहले तो इतनी छोटी सी भूल के लिए इतने जोरदार गुस्से के लिए हम लोगों ने उन्हें काफी कोसा था. उनका कहना था कि जहर खाकर आत्महत्या लिखना काफी है, क्यों हम लोगों को आत्महत्या वाली दवाइयों का नाम प्रचारित कर रहे हैं. अब उनकी बात को याद करके लगता है कि हम खबरों को सनसनीखेज बनाने के चक्कर में क्या क्या गलती करते हैं.। मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति या समुदाय का कोई भी कदम विचारधारा की परिणिति होती है. विचारधारा समाज और इसमें होने वाली घटनाओं को महत्व देने से बनती है. हम अक्सर देखते हैं कि किसी हादसे या घटना के पक्ष-विपक्ष में होने वाली प्रतिक्रया को जनभावना के रूप में प्रचारित किया जाता है. लेकिन वास्तव में ये जनभावनाएं नहीं होती. इसमें कुछ ऐसी विचारधारा होती है, जो कहीं कहीं से बायस्ड होती है. जिसका परिणाम हर उस व्यक्ति को भुगतना पड़ता है, जो इससे प्रभावित हुआ है. बार-बार इस तरह की घटनाओं के सुनने या देखने से यह भी लगता है कि लोगों ने इस ढ़ंग से अपनी तकलीफ या समस्या को कम करने की कोशिश की थी, भले ही वे सफल हुए या नहीं,  इससे उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता. आपने देखा होगा कि मीडिया में किसी घटना के जरूरत से ज्यादा प्रचारित होने पर आसपास या कहीं और उसकी पुनरावृत्ति होती है। कुल मिलाकर मेरा कहना है कि टीआरपी के चक्कर में हम लोगों के मन मस्तिष्‍क को किस तरह दूषित कर रहे हैं,  इसका भी ध्यान रखना चाहिए. केवल साप्ताहिक रेटिंग के लिए हम अपने दायित्वों और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों न भूलें तो हम एक अच्छा वातावरण बना सकते हैं. नेशनल चैनल में तो फिर भी स्थिति थोड़ी ठीक है, लेकिन रीजनल चैनलों ने पूरी सीमाएं ही लांघ दी हैं. वहां बैठे वरिष्ठ संपादक और अनुभवी लो यह भी भूल जाते हैं कि उनके चैनल को घर परिवार में छोटे से लेकर बड़े बुजुर्ग भी देखते हैं. टिकर और ब्रेकिंग खबरें तो ऐसी चलती हैं, जैसे अपराध नहीं हुए तो चैनल बंद हो जाएगा। मेरा यह भी नहीं कहना है कि चैनल को गुडी-गुडी होना चाहिए, लेकिन लोगों के पास ढेरों समस्याएं है, उनका निराकरण कर गैरजिम्‍म्‍ेदार लोगों को बेनकाब किया जा सकता है. समाज में ज्यादा से ज्यादा अच्छाई लाने और बुराइयों को खत्म करने की कोशिश होनी चाहिए. न कि गलत कामों को इस तरह पेश किया जाए कि लोग उसकी तरफ आकर्षित हों. हम ऐसे लोगों को सामने लाने से सिर्फ इसलिए परहेज करते हैं, क्योंकि वे लोग प्रभावशाली होते हैं. मेरा कहना है कि प्रभावशाली और दबंग लोगों की असलियत सामने लाकर भी टीआरपी बढ़ायी जा सकती है.
लेखक समरेंद्र रायपुर के निवासी हैं

रविवार, 18 जुलाई 2010

वरिष्ठ पत्रकार कमल शर्मा का शनिवार को निधन


नौ महीने से बीमार चल रहे 43 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार कमल शर्मा का शनिवार को निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार रविवार सुबह 11 बजे गीता कालोनी स्थित श्मशान घाट पर किया जाएगा. मोटरसाइकिल से दुर्घटनाग्रस्त होने से उनके पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ था. इससे उबरते ही दो माह बाद उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया. इसका इलाज चल रहा था. शनिवार दोपहर तबियत खराब होने पर उन्हें लाइफ लाइन, फिर मैक्स बालाजी और अंत में लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
वह आज तक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पत्रकार थे. इसके पहले वह नवभारत टाइम्स में कार्यरत थे. वह चार भाइयों में तीसरे नंबर पर थे. कमल की मौत पर दिल्ली का पूरा मीडिया जगत मर्माहत है. उनके साथ काम कर चुके दर्जनों क्राइम रिपोर्टर आज रुआंसे हैं. सब उनके सरल सहज व्यवहार की चर्चा कर रहे हैं. किसी को कतई अंदेशा न था कि कमल शर्मा जी इस तरह अचानक सभी को छोड़ कर चले जाएंगे. कमल के साथ काम करने वाले कई लोग उनसे काम के गुर सीखकर बड़े पदों पर चले गए, लेकिन कमल का कभी किसी के प्रति प्यार कम न हुआ. वे जैसे थे, वैसे ही रहे. कहते हैं कि अच्छे लोग जल्द इस दुनिया से चले जाते हैं. कमल शायद ऐसे ही अच्छे लोगों में से थे जिन्हें ईश्वर ने दुनिया के साथ रहने-जीने नहीं दिया. कमल जी के अंतिम संस्कार में कल दिन में 11 बजे गीता कालोनी स्थित श्मशान घाट पर उनके चाहने और जानने वाले इकट्ठा होंगे. समय हो तो आप भी आइए.

बठिंडा प्रेस क्लब को मिलेगी पंचायत भवन की इमारत

उपमुख्यमंत्री ने डीसी से इमारत प्रेस क्लब के हेडओवर करने को कहा -
प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए पहला चरण पूरा 
बठिंडा प्रेस क्लब के लिए राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल ने खेल स्टेडियम के साथ बने पंचायती भवन की इमारत वाली जगह देने की घोषणा की है। इस बाबत उन्होंने डीसी गुरकृतकृपाल सिंह को इस बाबत बनती औपचारिकता पूरी करने के लिए कहा है। बठिंडा प्रेस क्लब के प्रधान एसपी शर्मा इस बाबत शनिवार को उपमुख्यमंत्री के बठिंडा दौरे में मिले थे, जिन्होंने पत्रकारों की तरफ से गठित प्रेस क्लब की जानकारी उन्हें दी व भवन निर्माण के लिए स्थान व फंड देने की मांग रखी थी। इसमें श्री बादल ने बठिंडा प्रेस क्लब को इस प्रयास के लिए बधाई दी व उन्हें हरसंभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि पंचायती भवन को तबदील करने के बाद वहां की इमारत खाली है, जिसमें बठिंडा प्रेस क्लब की नई इमारत का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने इसके लिए डीसी से सभी औपचारिकता पूरी कर इमारत को प्रेस क्लब के हेडओवर करने की हिदायत दी। बठिंडा प्रेस क्लब ने उपमुख्यमंत्री सुखवीर बादल, सांसद हरसिमरत कौर बादल को इसके लिए धन्यवाद दिया। दूसरी तरफ प्रेस क्लब के लिए सदस्यता अभियान का पहला चरण १७ जुलाई को पूरा हो गया है। इसमें सदस्यता हासिल करने वाले सदस्यों के फार्म अनुमोदन के लिए कोर कमेटी के पास भेज दिए गए है जिसमें  इस सप्ताह होने वाली संभावित प्रेस क्लब की बैठक में विचार किया जाएगा।   

नरिंदर शर्मा भास्कर बठिंडा के नए ब्यूरो चीफ

बठिंडा दैनिक भास्कर से खबर है कि सिनियर रिपोर्टर नरिंदर शर्मा स्थानीय ब्योरो चीफ बना दिए गए है। उन्हें ऋतेश श्रीवास्तव के तबादले के बाद उक्त जिम्मेवारी दी गई है। ऋतेश का तबादला लुधियाना किया गया है जबकि चर्चा है कि शायद उन्हें भास्कर के जम्मू लांचिग में शामिल कर वहां स्थायी जिम्मेवारी दी जा सकती है। फिलहाल स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे स्थानीय स्टाफ के साथ लोगों तक हर खबर पहुंचाने व भास्कर को लांचिग वाली कापियों की संख्या में बनाए रखना नरिंदर शर्मा के लिए बडी़ चुनौती होगी। फिलहाल उनके ब्यूरो चीफ बनने के बाद उनके ही कुछ सहयोगियों की बेचैनी जरूर बढ़ गई है क्योंकि उन्हें अब नए प्रबंधन के साथ नए ढंग से काम करना पडे़गा जिसके लिए उन्हें अब अपने आप को साबित करने के लिए कडी़ मश्कत करनी पडे़गी। इससे पहले भास्कर बठिंडा को दो रिपोर्टर अलविदा कहकर दैनिक जागरण बठिंडा जा चुके हैं। फिलहाल दो  रिपोर्टर के सहारे चल रहे भास्कर अखबार के कार्यालय में कुछ दिनों से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था. ब्‍यूरो चीफ के रवैये से परेशान दो रिपोर्टर ने संस्‍थान को बॉय बोल दिया था। तीसरा रिपोर्टर अपनी अनदेखी के चलते बिना रिपोर्ट के महज आपरेटर का काम कर रहा है।. सभी ने अपनी परेशानी से यूनिट के वरिष्‍ठ लोगों को अवगत कराया था, सुनवाई न होने से नाराज रिपोर्टरों ने संस्थान को नमस्‍कार कर लिया था।फिलहाल दैनिक भास्कर की नई प्रेस को लेकर भी बठिंडा में काम चल रहा है, इस हालात में श्री शर्मा के लिए अखबार को बुलंदी में पहुंचाना बडी़ चुनौती तो रहेगी साथ ही उन्हें प्रबंधकों के सामने स्वंय को साबित करना होगा। ब्यूरो चीफ के तौर पर उनकी यह पहली पारी है जिसमें वह कितना सफल होते हैं यह तो आने वाले समय में पता चल सकेगा लेकिन इस युवा ब्यूरो चीफ से लोगों को उम्मीद काफी है। शुभकामनाएं श्री शर्मा जी।   

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

भास्कर, जम्मू की टीम फाइनल

-लांचिंग 24 जुलाई को संभावित
-पंजाब केसरी के दो पत्रकारों ने ज्वाइन किया 
-अमर उजाला के गौरव भी भास्कर पहुंचे : दो फोटोग्राफरों ने भास्कर का दामन थामा : चंडीगढ़ से सूचना है कि पंजाब केसरी से दो लोगों ने इस्तीफा देकर दैनिक भास्कर की नई लांच होने वाली जम्मू यूनिट के साथ नई पारी शुरू की है. इनके नाम हैं पवित्तर गुप्ता और अजय मीनिया. सूत्रों के मुताबिक पवित्तर गुप्ता ने चीफ रिपोर्टर के पद पर भास्कर, जम्मू ज्वाइन किया है.बताया जाता है कि पंजाब केसरी को जब इन दोनों पत्रकारों के भास्कर ज्वाइन करने की भनक लगी तो इनकी सेलरी रोक दी. जम्मू में भास्कर की लांचिंग की तारीख करीब-करीब तय हो गई है. 24 जुलाई को अखबार प्रकाशित किया जाएगा, ऐसा माना जा रहा है. अमर उजाला, चंडीगढ़ से भी एक विकेट गिरा है. गोविंद चौहान ने भी दैनिक भास्कर, जम्मू ज्वाइन कर लिया है. वे सीनियर सब एडिटर के पद पर पहुंचे हैं. अमर उजाला, जम्मू के फोटोग्राफर अंकुर सेठी, जो काफी समय से रिटेनर के रूप में काम कर रहे थे, ने दैनिक भास्कर, जम्मू में फोटोग्राफर के रूप में ज्वाइन किया है। इंडियन एक्सप्रेस में काम कर चुके फोटोग्राफर अमरजीत सिंह भी भास्कर, जम्मू के हिस्से बन गए हैं. भास्कर, जम्मू की रिपोर्टिंग टीम करीब-करीब तैयार हो चुकी है. चीफ रिपोर्टर पवित्तर गुप्ता के अलावा उपमिता, अजय मीनिया, अविनाश, जूही समेत कुल सात रिपोर्टर रखे गए हैं. हेमंत कुमार न्यूज एडिटर के रूप में जम्मू एडिशन को देखेंगे. लांचिंग की तैयारियों के लिए चेतन शारदा जम्मू में डेरा डाले हैं. अभिजीत मिश्रा और कमलेश सिंह भी जम्मू पहुंचने वाले हैं और लांचिंग की तैयारियों को अंतिम रूप दिलाएंगे।