बुधवार, 7 जुलाई 2010

सिर चढ़कर बोल रहा है जिम जाने का जनून

स्लिम होने का जुनून मायानगरी की हसीनाओं के सिर पर ही संवार नहीं, बल्कि बठिंडा नगरी के पत्रकारों में भी युवा व स्लिम होना का क्रेज बढ़ता जा रहा है। पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखते ही आपको मुफ्त के खाने के ऑफर आम मिलने शुरू हो जाते हैं, मुफ्त का खाना पीना जब तोंद बाहर की तरफ बढ़ने लगती है तो आइने के सामने खड़े होने से शर्म महसूस होने लगती है, पत्नियां और प्रेमिका बड़ी तोंद पर एतराज जिताते लगती हैं। ऐसे में याद आती है जिम जाने की। जो पत्रकार आज जिम जा रहे हैं, वो युवावस्था में कभी जिम पर गए लेकिन किन्ही कारणों से अब नहीं जा रहे थे लेकिन अब वह फिर से जिम जाकर स्वयं को तंदरुस्त बनाने में लगे हैं। इसका सकरात्मक पहलु यह है कि अब इनमें कई पत्रकारों को अब आप पहचान भी नहीं सकते हैं। फिलहाल इन पत्रकारों को देखकर दूसरे भी प्रेरणा लेने लगे हैं इसके चलते कई अधेड़ उम्र के व्यापारी भी अब जिम जा रहे हैं। यही नहीं उक्त लोग अब दूसरों को जिम जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस जनजागरण अभियान को जहां लोगों को फायदा हो रहा है वही जिम चलाने वाले भी बिना प्रचार के धंधा जमा रहे हैं।
आज आलम ऐसा है कि बठिंडा के समाचार पत्रों में कार्यरत ज्यादातर संवाददाता अब जिम में पसीना बहाने में व्यस्त हैं। इसके पीछे कुछ और भी कारण हो सकता है, खुद को आकर्षक बना दूसरे पर प्रभाव जमाना। मुझे एक किस्सा याद आ रहा है, जो आज से कुछ साल पहले घटित हुआ था। हुआ यूं कि एक काफी हेल्थी पत्रकार को एक महिला का फोन आया कि मैं आपकी खबरें पढ़ती हूं और आपसे मिलना चाहती हूं। उसने पत्रकार को स्थानीय मिनी सचिवालय में बुलाया। वो पत्रकार भी घर से बड़ा सज धज कर उससे मिलने निकला, लेकिन वहां कोई महिला थी ही नहीं। किसी ने उसको मूर्ख बनाया था। उस पत्रकार की तरह आज इन पत्रकारों में खुद को आकर्षक बनाने की होड़ है, ताकि कोई युवती उनको देखकर उन पर लट्टू हो जाए। फिलहाल इसके पिछे मकसद कुछ भी हो लेकिन इसका फायदा यह जरूर हो रहा है कि एक स्वास्थ्य पत्रकार समाज का निमार्ण जरूर हो रहा है।

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