शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

झगड़े में फंसा जम्‍मू से भास्‍कर का प्रकाशन

टाइटिल वेरिफिकेशन और डिक्लयरेशन पर स्टे : भास्कर घराने का झगड़ा डीबी कार्प वालों को भारी पड़ता दिख रहा है. ताजी खबर जम्मू से है. डीबी कॉर्प ने 25 मई, 2010 को जम्‍मू से दैनिक भास्‍कर के प्रकाशन के लिये टाइटल वेरिफिकेशन के लिये आवेदन किया था. जम्‍मू जिला प्रशासन ने 2 जून को आरएनआई से राय मांगी. 9 जून को आरएनआई ने वेरिफिकेशन पर मुहर लगा दी. 15 जून 2010 को डीबी कॉर्प ने जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां डिक्‍लयरेशन फाइल कर दिया.
24 जुलाई से जम्‍मू से अखबार लॉचिंग की खबर बाजार में आ गई.. दैनिक भास्‍कर के को-ऑनर संजय अग्रवाल ने 21 जुलाई को 2010 को जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां अपनी आपत्ति दर्ज कराई. 22 जुलाई को जम्‍मू से प्रकाशन रोकने के लिये टाइटल वेरिफिकेशन एवं डिक्‍लयरेशन के खिलाफ जम्‍मू हाईकोर्ट में रिट पिटीशन फाइल किया. आज जम्‍मू हाईकोर्ट की जस्टिस सुनील हाली की बेंच ने संजय अग्रवाल का डीबी कॉर्प के 9 जून के टाइटल वेरिफिकेशन एवं 15 जून के डिक्‍लयरेशन पर स्‍टे देते हुए जिला प्रशासन जम्‍मू को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए. संजय अग्रवाल ने अपनी रिट पिटीशन में डी बी कॉर्प, जिला प्रशासन जम्‍मू, आरएनआई एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय को पार्टी बनाया था.
संजय अग्रवाल के 22 जुलाई को हाईकोर्ट पहुंचने की खबर जब डी बी कॉर्प के लोगों तक पहुंची तब उन्‍होंने आनन-फानन में वकीलों की सलाह पर दैनिक भास्‍कर का 21 जुलाई का अखबार छापकर उसकी प्रति 23 जुलाई को जिला प्रशासन जम्‍मू के यहां जमा कराई. 23 जुलाई को जब संजय अग्रवाल जिला प्रशासन के समक्ष हाईकोर्ट के निर्देश की प्रति लेकर पहुंचे उसी समय दैनिक भास्‍कर की ओर से 21 जुलाई का अखबार वहां जमा किया गया. जबकि डीबी कॉर्प 24 जुलाई को जोर-शोर से भास्‍कर के जम्‍मू से प्रकाशन की योजना बना रहा था. हालांकि हाईकोर्ट के फैसले की औपचारिक प्रति सोमवार को मिलेगी.
इसके पूर्व रांची से भी दैनिक भास्‍कर के प्रकाशन की तैयारियों के बीच संजय अग्रवाल ने डीबी कॉर्प के रांची से प्रकाशन के खिलाफ दिल्‍ली हाईकोर्ट से स्‍टे ले रखा है. इसे वैकेट कराने के लिये आठ करोड़ राची में इनवेस्‍टमेंट एवं 400 कर्मचारियों की नियुक्ति का वास्‍ता देकर डी बी कॉर्प की तरफ से कांग्रेस नेता एवं एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी लेकिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने स्‍टे वैकेट न कर 28 जुलाई की तिथि निर्धारित की है.
सौजन्यः-भडा़स फोर मीडिया डाट काम  

अमर उजाला, आगरा में चल रहा है 'सफाई' अभियान

अमर उजाला, आगरा का माहौल भी बेहद गरम है. पिछले दिनों दो लोगों को हटाए जाने और दो को कार्यमुक्ति का नोटिस दिए जाने के बाद अब पता चल रहा है कि कुल छह लोगों को बाहर निकाले जाने की तैयारी है जिसमें सीनियर सब एडिटर और सब एडिटर भी शामिल हैं. खासकर उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो या तो बहुत पुराने हैं या बिलकुल नए. जितने भी ट्रेनी रखे गए थे, उन्हें हटाकर फिर से नए ट्रेनी भर्ती किए जा रहे हैं.
कभी अजय अग्रवाल, फिर अशोक अग्रवाल की यूनिट माने जाने वाली आगरा यूनिट अब पूरी तरह से माहेश्वरी ब्रदर्स के अधीन है. माहेश्वरी ब्रदर्स के खास आदमी के रूप में राजेंद्र त्रिपाठी आगरा में संपादक पद पर तैनात हैं और सफाई अभियान चला रहे हैं. इस अभियान के पीछे मंशा पुराने समय के निष्ठावान लोगों को किनारे लगाना या बाहर करना है और नए मैनेजमेंट के लायल लोगों को बढ़ावा देना व भर्ती करना है. देखना है कि उठापटक का यह दौर कब खत्म होता है.

 अमर उजाला, कानपुर से कई खबरें हैं. दैनिक भास्कर, पटियाला के सीनियर रिपोर्टर संदीप अवस्थी यहां प्रिंसिपल करेस्पांडेंट पद पर ज्वाइन करने वाले हैं. रवींद्र नाथ झा न्यूज एडिटर के रूप में अमर उजाला, कानपुर में दस्तक देने वाले हैं. चर्चा है कि उन्हें अमर उजाला के टैबलायड अखबार कांपैक्ट का प्रभारी बनाया जाएगा.
अभी तक प्रभारी के रूप में महेश शर्मा काम देख रहे हैं. सिटी चीफ के रूप में काम देख रहे कौशल किशोर का प्रादेशिक डेस्क का प्रभारी बनाया गया है. प्रादेशिक डेस्क को दो हिस्से में बांटा गया है. एक हिस्से के प्रभारी जेपी त्रिपाठी बनाए गए हैं और दूसरे हिस्से के प्रभारी की जिम्मेदारी कौशल किशोर को दी गई है. फिलहाल सिटी चीफ की जिम्मेदारी शैलेश अवस्थी को दी गई है. तीन लोगों ने अमर उजाला,  कानपुर से नाता तोड़ लिया है. ये हैं न्यूज एडिटर धीरेंद्र प्रताप सिंह, सीनियर सब एडिटर कुमार विजय और सब एडिटर मनोज सिंह.
मनोज सिंह के बारे में सूचना है कि वे दैनिक जागरण, लखनऊ के साथ जुड़ गए हैं. नाराज होकर इस्तीफा देने वाले सीनियर सब एडिटर विवेक त्रिपाठी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है और फिर से वे अमर उजाला, कानपुर में सक्रिय हो गए हैं. अमर उजाला, कानपुर यूनिट से संबद्ध दो जिलों के ब्यूरो चीफों का भी तबादला किया गया है, फर्रूखाबाद के ब्यूरो चीफ राजीव शुक्ला को हरदोई और हरदोई के ब्यूरो चीफ ब्रजेश शुक्ला को फर्रूखाबाद का ब्यूरो चीफ बनाया गया है. इन तमाम बदलावों, ज्वाइनिंग, गतिविधियों से अमर उजाला कानपुर का माहौल सरगर्म बना हुआ है.
सौजन्यः-भडा़स फोर मीडिया डाट काम  

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

सड़कों पर बेखौफ दौड़ रहे हैं प्रेस लिखे वाहन

-कई लोगों का तो प्रेस और पत्रकारिता से दूर का भी संबंध नहीं
-अपने फायदे केञ् साथ लोगों पर रौब झाड़ने केञ् लिए करते हैं गलत इस्तेमाल 
संजय शर्मा 
बठिंडा। व्यवसायिक फायदा उठाने व लोगों पर रौब झाड़ने के लिए इन दिनों मीडिया के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रेस का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। मोटरसाइकिलों से लेकर कारों में प्रेस लिखकर गाड़ी सड़कों पर आवागमन करती आसानी से दिखाई देते हैं। इसमें ज्यादातर लोग ऐसे है जिनका मीडिया से दूर-दूर तक का कुछ नहीं लेना है लेकिन उन्होंने कार व मोटरसाइकिल में आगे व पीछे बडे़-बडे़ अक्षरों में प्रेस लिखकर लगा रखा है। इसमें कई लोग तो ऐसे है जो मीडिया कर्मी के रिश्तेदार या फिर दोस्तों की श्रेणी या फिर जानपहचान वालों में होते हैं। इस तरह के वाहनों को पुलिस कर्मचारी भी जांच पड़ताल नहीं करते हैं जिससे कई बार उक्त लोग इन वाहनों का इस्तेमाल गैरकानूनी कार्यों के लिए करते हैं। पिछले दिनों प्रेस लिखे कई ऐसे वाहन पुलिस ने पकडे़ हैं जिसमें गैरकानूनी तौर पर दवाईयां या फिर टैक्स चोरी का सामान लादकर लाया जा रहा था। इस मामले में बठिंडा जिले के विभिन्न सामाचार पत्रों के प्रतिनिधि जिला प्रशासन से सख्त कार्रवाई करने की मांग कर चुके हैं लेकिन इसमें आज तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकी है। 
तीन साल पहले पुलिस प्रशासन ने प्रेस लिखे ऐसे वाहनों की जांच पड़ताल करवाने व इन्हें जब्त करने का अभियान शुरू किया था। इसके तहत सभी अखबारों के प्रतिनिधियों से उनके यहां काम करने वाले लोगों की सूचि मांगी गई थी। इसमें पत्रकार का नाम, पता, फोन नंबर के इलावा इस्तेमाल किए जा रहे वाहन का नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस का नंबर मांगा गया था। इस मुहिम में प्रशासन की तरफ से जायज पत्रकारों को एक परिचय पत्र जारी किया जाना था। इस परिचय पत्र के धारक ही अपने वाहनों में प्रेस लिख सकते थे लेकिन यह मुहिम भी प्रशासन पूरी नहीं कर सका और उसने फार्म जमाकर आगे किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। फिलहाल प्रशासन की ढिली नीतियों के कारण सड़कों में बेखौफ दौड़ते प्रेस लिखे वाहन लोगों के साथ पुलिस कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब बने हुए है। इस मामले में चिंताजनक पहलु यह है कि इस तरह के वाहनों से गौरकानूनी कार्यों के साथ असामाजिक तत्व व देश द्रोही तत्वों को संरक्षण मिल सकता है जो किसी भी समय प्रेस के नाम पर किसी अनहोनी घटना को अंजाम दे सकते हैं। इस तरह के तत्वों पर रोक लगाने के लिए प्रशासन को जल्द सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। यहां बताना जरूरी है कि अधितकर वाहन चालक को अपने वाहनों में प्रेस मात्र इसलिए लिखाकर रखते हैं कि किसी चौक व नाके में पुलिस कर्मी उन्हें नहीं रोकेगा व दस्तावेज की मांग नहीं करेगा। इस क्रम में तत्कालीन एसपी सीटी निलाभ किशोर ने एक मुहिम के तहत प्रेस लिखे वाहनों की जांच शुरू की थी तो उसमें पाया गया कि ७० फीसदी लोगों ने अपने वाहनों में प्रेस इसलिए लिखाकर रखा है कि उन्हें कोई पत्रकार जानता है या फिर किसी अखबार व पत्रिका से उन्होंने जानपहचान के आधार पर प्रेस का कार्ड बनवा रखा है जबकि खबरे भेजने या फोटो खीचने जैसे कार्यों से उनका कोई भी लेना देना नहीं होता है। समाज सेवी राकेश नरुला का कहना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अखबार प्रतिनिधियों को भी आगे आना होगा उन्हें ऐसे लोगों को परिचय पत्र जारी करने से गुरेज करना चाहिए जिनका पत्रकारिता से किसी तरह का लेना देना नहीं है व प्रेस लिखकर वह प्रेस का इस्तेमाल करते हैं। वही जिला प्रशासन को भी इस बाबत अखबार प्रतिनिधियों के साथ मिलकर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे इस तरह केञ् गौरखधंधे पर रोक लगे।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

पेड न्यूज और पैसे की हेराफेरी के बारे में दर्जनों जगह भेजी शिकायत

: दैनिक जागरण से चीफ रिपोर्टर पद से इस्तीफा देने वाले राकेश शर्मा ने कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं. उन्होंने दैनिक जागरण पर लगे पेड न्यूज के आरोपों को पुख्ता कर दिया है. सेबी को लिखे अपने पत्र में राकेश ने विस्तार से सारी बातें कहीं हैं जिसे नीचे प्रकाशित किया गया है.
राकेश शर्मा ने जागरण के साथ 10 अप्रैल 2002 से पारी शुरू की. तब उन्हें करनाल में ज्वाइन कराया गया था. 1 मार्च 2005 को उन्हें कुरुक्षेत्र भेज दिया गया. 5 मई 2008 को फरीदाबाद ट्रांसफर हो गया. 26 दिसंबर 2009 को उन्हें ट्रांसफर कर पंजाब के रोपड़ भेज दिया गया. राकेश ने 2 फरवरी 2010 को अपना इस्तीफा सौंप दिया. राकेश शर्मा ने अपने कार्यकाल में दो लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव कवर किए हैं.
बीते लोकसभा -विधानसभा चुनाव में राकेश फरीदाबाद में हुआ करते थे. उससे पहले जो लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव हुए थे, राकेश करनाल में दैनिक जागरण के लिए कार्यरत थे. राकेश ने दैनिक जागरण की जो शिकायत सेबी, चुनाव आयोग, राष्ट्रपति, प्रेस काउंसिल आदि को भेजी है, उसमें काफी कुछ कहा गया है. साथ में उन्होंने पेड न्यूज के रूप में लिए गए पैसे की डिटेल भी भेजी है. सारे दस्तावेज यहां प्रकाशित किए जा रहे हैं. -एडिटर

सौजन्यः-भडा़स4मीडिया डाट काम  

रेटिंग के चक्कर में न्यूज चैनल मन-मस्तिष्क कर रहे हैं दूषित :

 टक पटक कर मार डाला... भाई-बहन का रिश्ता हुआ शर्मसार... ममता हुई कलंकित... इस तरह की सुर्खियां आजकल हर न्यूज चैनल की पहली हेडलाइन होती है। टीवी खोलते ही इस तरह की खबरें देखकर कई बार बुरी तरह से इरीटेशन होता है. मुझे लगता है कि ऐसा केवल मेरे साथ नहीं बल्कि कइयों के साथ होता है. पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण इसकी वैल्यू को समझता हूं. कई बार ऐसे मौके आए जब इस तरह की खबरों को सनसनीखेज बनाने के लिए मीटिंग में माथापच्ची करनी पड़ती थी. दरअसल यह बात इसलिए भी कर रहा हूं कि मुझे अपने एक संपादक की बात याद आ गई।। 
आत्महत्या की एक खबर पर वो सिर्फ इसलिए जोरदार भड़क गए थे कि मेरे सहयोगी रिपोर्टर ने हेडलाइन से लेकर खबर में भी दो-तीन जगह 'सल्फास खाकर युवक ने खुदकुशी की', लिख दी थी. पहले तो इतनी छोटी सी भूल के लिए इतने जोरदार गुस्से के लिए हम लोगों ने उन्हें काफी कोसा था. उनका कहना था कि जहर खाकर आत्महत्या लिखना काफी है, क्यों हम लोगों को आत्महत्या वाली दवाइयों का नाम प्रचारित कर रहे हैं. अब उनकी बात को याद करके लगता है कि हम खबरों को सनसनीखेज बनाने के चक्कर में क्या क्या गलती करते हैं.। मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति या समुदाय का कोई भी कदम विचारधारा की परिणिति होती है. विचारधारा समाज और इसमें होने वाली घटनाओं को महत्व देने से बनती है. हम अक्सर देखते हैं कि किसी हादसे या घटना के पक्ष-विपक्ष में होने वाली प्रतिक्रया को जनभावना के रूप में प्रचारित किया जाता है. लेकिन वास्तव में ये जनभावनाएं नहीं होती. इसमें कुछ ऐसी विचारधारा होती है, जो कहीं कहीं से बायस्ड होती है. जिसका परिणाम हर उस व्यक्ति को भुगतना पड़ता है, जो इससे प्रभावित हुआ है. बार-बार इस तरह की घटनाओं के सुनने या देखने से यह भी लगता है कि लोगों ने इस ढ़ंग से अपनी तकलीफ या समस्या को कम करने की कोशिश की थी, भले ही वे सफल हुए या नहीं,  इससे उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता. आपने देखा होगा कि मीडिया में किसी घटना के जरूरत से ज्यादा प्रचारित होने पर आसपास या कहीं और उसकी पुनरावृत्ति होती है। कुल मिलाकर मेरा कहना है कि टीआरपी के चक्कर में हम लोगों के मन मस्तिष्‍क को किस तरह दूषित कर रहे हैं,  इसका भी ध्यान रखना चाहिए. केवल साप्ताहिक रेटिंग के लिए हम अपने दायित्वों और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों न भूलें तो हम एक अच्छा वातावरण बना सकते हैं. नेशनल चैनल में तो फिर भी स्थिति थोड़ी ठीक है, लेकिन रीजनल चैनलों ने पूरी सीमाएं ही लांघ दी हैं. वहां बैठे वरिष्ठ संपादक और अनुभवी लो यह भी भूल जाते हैं कि उनके चैनल को घर परिवार में छोटे से लेकर बड़े बुजुर्ग भी देखते हैं. टिकर और ब्रेकिंग खबरें तो ऐसी चलती हैं, जैसे अपराध नहीं हुए तो चैनल बंद हो जाएगा। मेरा यह भी नहीं कहना है कि चैनल को गुडी-गुडी होना चाहिए, लेकिन लोगों के पास ढेरों समस्याएं है, उनका निराकरण कर गैरजिम्‍म्‍ेदार लोगों को बेनकाब किया जा सकता है. समाज में ज्यादा से ज्यादा अच्छाई लाने और बुराइयों को खत्म करने की कोशिश होनी चाहिए. न कि गलत कामों को इस तरह पेश किया जाए कि लोग उसकी तरफ आकर्षित हों. हम ऐसे लोगों को सामने लाने से सिर्फ इसलिए परहेज करते हैं, क्योंकि वे लोग प्रभावशाली होते हैं. मेरा कहना है कि प्रभावशाली और दबंग लोगों की असलियत सामने लाकर भी टीआरपी बढ़ायी जा सकती है.
लेखक समरेंद्र रायपुर के निवासी हैं

रविवार, 18 जुलाई 2010

वरिष्ठ पत्रकार कमल शर्मा का शनिवार को निधन


नौ महीने से बीमार चल रहे 43 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार कमल शर्मा का शनिवार को निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार रविवार सुबह 11 बजे गीता कालोनी स्थित श्मशान घाट पर किया जाएगा. मोटरसाइकिल से दुर्घटनाग्रस्त होने से उनके पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ था. इससे उबरते ही दो माह बाद उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया. इसका इलाज चल रहा था. शनिवार दोपहर तबियत खराब होने पर उन्हें लाइफ लाइन, फिर मैक्स बालाजी और अंत में लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
वह आज तक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पत्रकार थे. इसके पहले वह नवभारत टाइम्स में कार्यरत थे. वह चार भाइयों में तीसरे नंबर पर थे. कमल की मौत पर दिल्ली का पूरा मीडिया जगत मर्माहत है. उनके साथ काम कर चुके दर्जनों क्राइम रिपोर्टर आज रुआंसे हैं. सब उनके सरल सहज व्यवहार की चर्चा कर रहे हैं. किसी को कतई अंदेशा न था कि कमल शर्मा जी इस तरह अचानक सभी को छोड़ कर चले जाएंगे. कमल के साथ काम करने वाले कई लोग उनसे काम के गुर सीखकर बड़े पदों पर चले गए, लेकिन कमल का कभी किसी के प्रति प्यार कम न हुआ. वे जैसे थे, वैसे ही रहे. कहते हैं कि अच्छे लोग जल्द इस दुनिया से चले जाते हैं. कमल शायद ऐसे ही अच्छे लोगों में से थे जिन्हें ईश्वर ने दुनिया के साथ रहने-जीने नहीं दिया. कमल जी के अंतिम संस्कार में कल दिन में 11 बजे गीता कालोनी स्थित श्मशान घाट पर उनके चाहने और जानने वाले इकट्ठा होंगे. समय हो तो आप भी आइए.

बठिंडा प्रेस क्लब को मिलेगी पंचायत भवन की इमारत

उपमुख्यमंत्री ने डीसी से इमारत प्रेस क्लब के हेडओवर करने को कहा -
प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए पहला चरण पूरा 
बठिंडा प्रेस क्लब के लिए राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल ने खेल स्टेडियम के साथ बने पंचायती भवन की इमारत वाली जगह देने की घोषणा की है। इस बाबत उन्होंने डीसी गुरकृतकृपाल सिंह को इस बाबत बनती औपचारिकता पूरी करने के लिए कहा है। बठिंडा प्रेस क्लब के प्रधान एसपी शर्मा इस बाबत शनिवार को उपमुख्यमंत्री के बठिंडा दौरे में मिले थे, जिन्होंने पत्रकारों की तरफ से गठित प्रेस क्लब की जानकारी उन्हें दी व भवन निर्माण के लिए स्थान व फंड देने की मांग रखी थी। इसमें श्री बादल ने बठिंडा प्रेस क्लब को इस प्रयास के लिए बधाई दी व उन्हें हरसंभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि पंचायती भवन को तबदील करने के बाद वहां की इमारत खाली है, जिसमें बठिंडा प्रेस क्लब की नई इमारत का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने इसके लिए डीसी से सभी औपचारिकता पूरी कर इमारत को प्रेस क्लब के हेडओवर करने की हिदायत दी। बठिंडा प्रेस क्लब ने उपमुख्यमंत्री सुखवीर बादल, सांसद हरसिमरत कौर बादल को इसके लिए धन्यवाद दिया। दूसरी तरफ प्रेस क्लब के लिए सदस्यता अभियान का पहला चरण १७ जुलाई को पूरा हो गया है। इसमें सदस्यता हासिल करने वाले सदस्यों के फार्म अनुमोदन के लिए कोर कमेटी के पास भेज दिए गए है जिसमें  इस सप्ताह होने वाली संभावित प्रेस क्लब की बैठक में विचार किया जाएगा।   

नरिंदर शर्मा भास्कर बठिंडा के नए ब्यूरो चीफ

बठिंडा दैनिक भास्कर से खबर है कि सिनियर रिपोर्टर नरिंदर शर्मा स्थानीय ब्योरो चीफ बना दिए गए है। उन्हें ऋतेश श्रीवास्तव के तबादले के बाद उक्त जिम्मेवारी दी गई है। ऋतेश का तबादला लुधियाना किया गया है जबकि चर्चा है कि शायद उन्हें भास्कर के जम्मू लांचिग में शामिल कर वहां स्थायी जिम्मेवारी दी जा सकती है। फिलहाल स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे स्थानीय स्टाफ के साथ लोगों तक हर खबर पहुंचाने व भास्कर को लांचिग वाली कापियों की संख्या में बनाए रखना नरिंदर शर्मा के लिए बडी़ चुनौती होगी। फिलहाल उनके ब्यूरो चीफ बनने के बाद उनके ही कुछ सहयोगियों की बेचैनी जरूर बढ़ गई है क्योंकि उन्हें अब नए प्रबंधन के साथ नए ढंग से काम करना पडे़गा जिसके लिए उन्हें अब अपने आप को साबित करने के लिए कडी़ मश्कत करनी पडे़गी। इससे पहले भास्कर बठिंडा को दो रिपोर्टर अलविदा कहकर दैनिक जागरण बठिंडा जा चुके हैं। फिलहाल दो  रिपोर्टर के सहारे चल रहे भास्कर अखबार के कार्यालय में कुछ दिनों से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था. ब्‍यूरो चीफ के रवैये से परेशान दो रिपोर्टर ने संस्‍थान को बॉय बोल दिया था। तीसरा रिपोर्टर अपनी अनदेखी के चलते बिना रिपोर्ट के महज आपरेटर का काम कर रहा है।. सभी ने अपनी परेशानी से यूनिट के वरिष्‍ठ लोगों को अवगत कराया था, सुनवाई न होने से नाराज रिपोर्टरों ने संस्थान को नमस्‍कार कर लिया था।फिलहाल दैनिक भास्कर की नई प्रेस को लेकर भी बठिंडा में काम चल रहा है, इस हालात में श्री शर्मा के लिए अखबार को बुलंदी में पहुंचाना बडी़ चुनौती तो रहेगी साथ ही उन्हें प्रबंधकों के सामने स्वंय को साबित करना होगा। ब्यूरो चीफ के तौर पर उनकी यह पहली पारी है जिसमें वह कितना सफल होते हैं यह तो आने वाले समय में पता चल सकेगा लेकिन इस युवा ब्यूरो चीफ से लोगों को उम्मीद काफी है। शुभकामनाएं श्री शर्मा जी।   

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

भास्कर, जम्मू की टीम फाइनल

-लांचिंग 24 जुलाई को संभावित
-पंजाब केसरी के दो पत्रकारों ने ज्वाइन किया 
-अमर उजाला के गौरव भी भास्कर पहुंचे : दो फोटोग्राफरों ने भास्कर का दामन थामा : चंडीगढ़ से सूचना है कि पंजाब केसरी से दो लोगों ने इस्तीफा देकर दैनिक भास्कर की नई लांच होने वाली जम्मू यूनिट के साथ नई पारी शुरू की है. इनके नाम हैं पवित्तर गुप्ता और अजय मीनिया. सूत्रों के मुताबिक पवित्तर गुप्ता ने चीफ रिपोर्टर के पद पर भास्कर, जम्मू ज्वाइन किया है.बताया जाता है कि पंजाब केसरी को जब इन दोनों पत्रकारों के भास्कर ज्वाइन करने की भनक लगी तो इनकी सेलरी रोक दी. जम्मू में भास्कर की लांचिंग की तारीख करीब-करीब तय हो गई है. 24 जुलाई को अखबार प्रकाशित किया जाएगा, ऐसा माना जा रहा है. अमर उजाला, चंडीगढ़ से भी एक विकेट गिरा है. गोविंद चौहान ने भी दैनिक भास्कर, जम्मू ज्वाइन कर लिया है. वे सीनियर सब एडिटर के पद पर पहुंचे हैं. अमर उजाला, जम्मू के फोटोग्राफर अंकुर सेठी, जो काफी समय से रिटेनर के रूप में काम कर रहे थे, ने दैनिक भास्कर, जम्मू में फोटोग्राफर के रूप में ज्वाइन किया है। इंडियन एक्सप्रेस में काम कर चुके फोटोग्राफर अमरजीत सिंह भी भास्कर, जम्मू के हिस्से बन गए हैं. भास्कर, जम्मू की रिपोर्टिंग टीम करीब-करीब तैयार हो चुकी है. चीफ रिपोर्टर पवित्तर गुप्ता के अलावा उपमिता, अजय मीनिया, अविनाश, जूही समेत कुल सात रिपोर्टर रखे गए हैं. हेमंत कुमार न्यूज एडिटर के रूप में जम्मू एडिशन को देखेंगे. लांचिंग की तैयारियों के लिए चेतन शारदा जम्मू में डेरा डाले हैं. अभिजीत मिश्रा और कमलेश सिंह भी जम्मू पहुंचने वाले हैं और लांचिंग की तैयारियों को अंतिम रूप दिलाएंगे।

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

पत्रकार का कैमरा छीनने व गालीगलौज करने वालों की गिरफ्तारी की मांग

मीडिया के साथ दुर्रव्यवहार की बठिंडा इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन ने की निदां
बठिंडा। गिदड़बाहा में आपरेशन ग्रीन हंट विरोधी जमहुरी फ्रंट पंजाब द्वारा हिमांशु कुमार के नेतृत्व में हो रहे प्रोग्राम की कवरेज कर रहे एक न्यूज चैनल के पत्रकार से हिमांशु कुमार के साथियों द्वारा कैमरा छीनने व गालीगालौज करने की बठिंडा के इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन ने सख्त शब्दों में निंदा की है। वहीं खुलेआम घूम रहे आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की है। इस मामले संबंधी में बठिंडा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन की एक बैठक प्रधान पीएस मिट्ठा की अध्यक्षता में हुई। जिसमें एसोसिएशन के पैर्टन स्वर्ण सिंह दानेवालिया, पीआरओ राम सिंह गिल, मेंबर राकेश कुमार, अशोक शर्मा, पवन बांसल सहित सभी ने बढ़कर हिस्सा लिया। बैठक में प्रधान पीएस मिट्ठा ने बताया कि १३ जुलाई गिदड़बाहा में आपरेशन ग्रीन हंट विरोधी जमहुरी फ्रंट पंजाब द्वारा हिमांशु कुमार के नेतृत्व में एक समारोह किया जा रहा था। इस दौरान हिमांशु कुमार के साथियों ने प्रोग्राम की कवरेज कर रहे एक नेशनल हिंदी न्यूज चैनल के रिपोर्टर सूरज भान का कैमरा छीन लिया व उसके साथ गालीगलौज की। एसोसिएशन के सदस्यों ने कहा कि पत्रकार के साथ हुई घटना की जितनी निंदा की जाए, उतनी कम है। पीआरओ राम सिंह गिल ने बताया कि स्थानीय पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ धारा ३८२,३४२,५०६,१४८,१४९ आईपीसी के तहत केस दर्ज किया है लेकिन उसके बावजूद भी आरोपी सरेआम घूम रहे हैं। एसोसिएशन ने मांग की है कि आरोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।
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बुधवार, 14 जुलाई 2010

अब बापू पर अश्लीलता की गोलियां

कमाई के लालच में अंधे हुए लोगों का अब निशाना गांधी बने हैं। अश्लीलता भरी चीजें परोस रातोंरात बेशुमार पैसा कमाने की कुत्सित चाह रखने वालों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बक्शा और उन पर अश्लीलता भरी शर्मनाक किताब रच डाली। और अब वह किताब शहर में मजे से बिक रही है। रंगीला गांधी नाम से बिक रही पुस्तक में जिस हद तक अश्लील वर्णन किए गए हैं, उसे देख तो कोई भी शर्मसार हो जाए। यह अश्लील किताब राजस्थान और पंजाब के साथ आसपास क  में धड़ल्ले से बिक रही है। यहीं नहीं किताब इतनी पापूलर हो रही है कि लोग इसकी फोटो कॉपी करवाकर भी पढ़ रहे हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों में भी ये पुस्तक छात्रों के बीच चर्चित हो रही है।



शर्मशार कर देने वाले शब्दों का पुंज



महात्मा गांधी के बारे में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो पढऩे वाला भी शर्मशार हो जाए। गांधी के बारे में बताया कि वो कैसे लड़कियों को ब्रह्मचर्य का प्रयोग करना सिखाते थे। उसमें दिया हुआ है कि उनकी शेतानियत का भांडा फोड़ उनके ही निजी सचिव निर्मल कुमार बोस ने किया। इस पुस्तक में उस समय की प्रसिद्ध महिलाओं के कुछ अन्य पुस्तकों के हवाले से लिखा गया है तथा महात्मा गांधी के साथ उनके संबंधों के बारे में बताया गया है।



बापू नगर में बापू के नाम 



रंगीला गांधी नाम की जो किताब शहर में बेची जा रही है। किताबों के आवरण पृष्ठ पर गांधीजी की फोटो दी गई है, जो अपनी दो शिष्याओं के कंधे पर हाथ रखे दिखाए गए हैं। ये किताब बापू नगर में भी बिक रही है।



कहां से प्रकाशित



किताब पर प्रकाशक का नाम भीम पत्रिका पब्लिकेशंज जालंधर दिया गया है। जिस पर जयपुर में चंद्रवाल साहित्य बुक सेंटर बी 75 नीति मार्ग बजाज नगर नामक बुक सेंटर की मुहर लगी हुई है। 



पुस्तक के आवरण पर



रंगीला गांधी नाम पुस्तक के मुख प्रष्ट पर मूल लेखक के नाम के रूप में एल.आर.बाली का नाम दिया हुआ है तथा उनके नीचे अनुवादक के रूप में सूर्यकांत शर्मा का नाम दिया हुआ है। अंतिम पेज पर श्री रतन लाल सांपला संस्थापक बुद्ध ट्रस्ट सोफी पिंड जिला जालंधर पंजाब लिखा हुआ है उसके नीचे लिखा है कि जिनकी प्रेरणा व सहायता से ये पुस्तक प्रकाशित हुई।



आंदोलन की तैयारी



छात्र नेता नरसी किराड़ ने बताया कि इस तरह की किताब की फोटोकॉपी राजस्थान विश्वविद्यालय में भी छात्रों के पास देखी गई हैं। जब महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का दर्ज है तो उनके खिलाफ अपशब्द लिखना गलत है। किताब लिखने वालों के खिलाफ आंदोलन चलाएंगे और किताब की होली जलाएंगे।

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

सीआईडी अफसर या फिर पत्रकार?

बठिंडा। जिले में एक ऐसा सख्श  आजकल चर्चा में है जो स्वयं को कभी सीआईडी तो कभी आरबीआई का अफसर तो कभी इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया का पत्रकार कहकर पैसे एठने का काम कर रहा है। महोदय उक्त काम अकेला नहीं अपितुं दो अन्य पत्रकारों के साथ मिलकर करते है। पीली पत्रकारिता के इस धंधे में उक्त लोग आए दिन लोगों को गुमराह करने के साथ उनके अवैध धंधे को सार्वजनिक करने की धमकी देकर मोटी उग्राही करते हैं। एक सज्जन पिछले दिनों मेरे पास आए। उन्होंने अपने साथ हुए एक घटनाक्रम की जानकारी मुझे दी तो इन तीन महोदयों का जिक्र भी होने लगा। उन्होंने बताया कि इसमें एक पत्रकार कभी किसी अखबार का तो कभी किसी चैनल का स्वयं को प्रतिनिधि बताता है जबकि वह है नहीं, यही नहीं उसके साथ दो अन्य साथी भी होते हैं जो टीवी चैनल के रिपोर्टर बताते हैं। इसमें महानगर के होटल संचालकों, थानों में आने वाले परिवारिक कलहों के मामलों के साथ पैसे वाली असामी के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी अपने पास होने की बात कहकर मनचाहे दाम वसूल कर लेते हैं। पहली बार बात एक लाख से शुरू होती है जो २० से ३० हजार में आकर तय हो जाती है। फिलहाल उक्त महोदयों ने जिले के दूसरे पत्रकारों को भी बदनाम कर रखा है। वही स्वयं को सीआईडी व आरबीआई जैसी सुरक्षा एजेंसी का प्रतिनिधि बताकर सुरक्षा एजेंसियों को भी धोखा देने में लगे हैं। फिलहाल यहां जरूरत है इस तरह के तत्वों को रोकने की जो पत्रकार और पत्रकारिता को बदनाम करने में तुले हैं। 

दैनिक जागरण अखबार के खिलाफ आरएमपी डाक्टरों का प्रदर्शन

बठिंडा जिले से खबर है कि वहां बड़े पैमाने पर दैनिक जागरण अखबार के खिलाफ आरएमपी डाक्टरों ने विरोध प्रदशर्न कर दफ्तर का घेराव किया। राज्य भर से इकट्ठे हुए आरएमपी डाक्टरों ने एक घंटे तक रास्ता भी जाम रखा। इस दौरान झोलाछाप डाक्टरों ने अखबार प्रबंधकों के खिलाफ भी नारेबाजी कर अखबार की तरफ से आरएमपी डाक्टरों के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम को बंद करने की मांग रखी। इस दौरान दैनिक जागरण अखबार के घोडा चौक स्थित दफ्तर पर सुरक्षा के व्यापक प्रबंध कर रखे थे जिसके चलते इस दौरान दफ्तर से आवागमन पूरी तरह से बंद रहा। दूसरी तरफ अखबार से दो टूक शब्दों में झोलाछाप डाक्टरों की तरफ से दबाब बनाने के लिए किए जा रहे इस तरह के प्रदशर्नों से दबाब में आए बिना अपने अभियान को जारी रखने की घोषणा की है। यहां बताना जरूरी है कि दैनिक जागरण अखबार की तरफ से लोगों की जान आफत में डालने वाले आरएमपी डाक्टरों के खिलाफ प्रदेश स्तरीय अभियान शुरू कर रखा है। इसमें अनक्वालीफाईड डाक्टरों की तरफ से की जा रही कारगुजारी को उजागर किया जा रहा है। इस अभियान के बाद अखबार को राज्य के कई हिस्सों में आरएमपी डाक्टरों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद उक्त अभियान निरंतर चल रहा है।  

सोमवार, 12 जुलाई 2010

पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे

Tuesday, 13 July 2010 10:39 एसएन विनोद भड़ास4मीडिया -

: नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं! पत्रकारिता नहीं बिक रही, बिक रहे हैं पत्रकार। ठीक उसी तरह जैसे कतिपय भ्रष्ट शासक-प्रशासक, जयचंद-मीर जाफर देश को बेचने की कोशिश करते रहे हैं, गद्दारी करते रहे हैं। किन्तु देश अपनी जगह कायम रहा। नींव पर पड़ी चोटों से लहूलुहान तो यह होता रहा है किन्तु अस्तित्व कायम।
पत्रकारिता में प्रविष्ट काले भेडिय़ों ने इसकी नींव पर कुठाराघात किया, चौराहे पर अपनी बोलियां लगवाते रहे, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए सौदेबाजी करते रहे, कलमें बेचीं, अखबार के पन्ने बेचे, टेलीविजन पर झूठ को सच-सच को झूठ दिखाने की कोशिश की, किसी को महिमामंडित किया तो किसी के चेहरे पर कालिख पोती, इसे पेशा बनाया, धंधा बनाया, चाटुकारिता की नई परंपरा शुरू की। बावजूद इसके, पत्रकारिता अपनी जगह कायम है, पत्रकार अवश्य बिकते रहे। प्रसून (पुण्य प्रसून वाजपेयी) निश्चय ही अपने शब्दों में संशोधन कर लेंगे।
खुशी हुई कि 'लॉबिंग, पैसे के बदले खबर और समकालीन पत्रकारिता' पर अखबारों और न्यूज चैनलों के कतिपय वरिष्ठ पत्रकारों ने (आत्म) चिंतन की पहल की। पत्रकारों के पतन पर चिंता जताई। अवसर था उदयन शर्मा फाउंडेशन द्वारा आयोजित संवाद का। इस पहल का स्वागत तो है किन्तु कतिपय शर्तों के साथ। एक चुनौती भी। पत्रकार, विशेषकर इस चर्चा में शामिल होने वाले पत्रकार पहले 'हमाम में सभी नंगे' की कहावत को झुठलाकर दिखाएं। इस बिंदु पर मैं पत्रकारीय मूल्य के पक्ष में कुछ कठोर होना चाहूंगा। बगैर किसी पूर्वाग्रह के, बगैर किसी दुराग्रह के और बगैर किसी निज स्वार्थ के मैं यह जानना चाहूंगा कि क्या संवाद में शामिल हो बेबाक विचार रखने वाले वरिष्ठ पत्रकारों ने मीडिया में प्रविष्ट 'रोग' के इलाज की कोशिशें की हैं? अवसर मिलने के बावजूद क्या ये तटस्थ नहीं बने रहे? बाजारवाद, कार्पोरेट जगत की मजबूरी आदि बहानों की ढाल के पीछे स्वयं कुछ पाने की कोशिश नहीं करते रहे?
राजदीप सरदेसाई 'पेड न्यूज' के लिए बाजारीकरण को जिम्मेदार अगर ठहराते हैं तो उन्हें यह भी बताना होगा कि मीडिया पर बाजार के प्रभाव को रोका जा सकता है या नहीं? हां, राजदीप की इस साफगोई के लिए अभिनंदन कि उन्होंने स्वीकार किया कि आज मीडिया राजनेताओं को तो एक्सपोज कर सकता है लेकिन कार्पोरेट को नहीं। क्यों? बहस का यह एक स्वतंत्र विषय है। कार्पोरेट को एक्सपोज क्यों नहीं किया जा सकता? वैसे पत्र और पत्रकार मौजूद हैं जो निडरतापूर्वक कार्पोरेट जगत को एक्सपोज कर रहे हैं।
अगर राजदीप का आशय पूंजी और विज्ञापन से है तो मैं चाहूंगा कि वे इस तथ्य को न भूलें कि पूंजी का स्रोत आम जनता ही है। हालांकि वर्तमान काल में पूंजी, जो अब कार्पोरेट जगत की तिजोरियों की बंदी बन चुकी है, हर क्षेत्र को 'डिक्टेट' कर रही है। स्रोत से जनता को जोड़कर देखने की चर्चा नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है। किन्तु मीडिया जगत, मीडिया कर्मी जब स्वयं को औरों से पृथक, ज्ञानी, समाज-देश के मार्गदर्शक के रूप में पेश करते हैं तब उन्हें परिवर्तन और पहल के पक्ष में क्रांति का आगाज करना ही होगा। कार्पोरेट के सामने नतमस्तक होने की बजाय शीश उठाकर चलने की नैतिकता अर्जित करनी होगी। यह मीडिया ही कर सकता है। संभव है यह। सिर्फ सच बोलने और सच लिखने का साहस चाहिए।


उम्र भर लिखते रहे

उम्र भर लिखते रहे,हर्फ़-हर्फ़ बिखरते रहे
बस तुझे देखा किये,आँख-आँख तकते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
कब किसे ने हमें कोई भी दिलासा दिया
खुद अपने-आप से हम यूँ ही लिपटते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.......
आस हमारे आस-पास आते-आते रह गयी..
हम चरागों की तरह जलते-बुझते रह गए.....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
हम रहे क्यूँ भला इतने ज्यादा पाक-साफ़
लोग हमें पागल और क्या-क्या समझते रहे...!!
उम्र भर लिखते रहे....
आज खुद से पूछते हैं,जिन्दगी-भर क्या किये
पागलों की तरह ताउम्र उल्टा-सीधा बकते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे....!!!!

शब्दों से मिल सकेगी मेरी आह को राह

क्यों लिख दूं कुछ ?

क्यों करूं पन्नों को स्याह

क्या मिलेगा आखिर ?

शब्दों से मिल सकेगी मेरी आह को राह

जरूरत दर जरूरत इंसान बदल रहा है

पर वो बदलाव जो आना चाहिए, कहां है ?

तुझे नहीं दिखता, मुझे नहीं दिखता

सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां, कहां है ?



लिखने भर से क्या बदल जाएगा बोल

क्या घाटी में कभी शांति के गुल खिलेगें

मजहब की खातिर कत्लोआम करते

मजहब के लुटेरे कब सच्चे मसीहा से मिलेगें

कहां है तेरा अल्लाह, कहां छिपा है भगवान

क्यों देखता नहीं, प्यार की छाती है लहूलुहान

जाति, धर्म, समाज, रूढ़ियां आगे बढ़ गई

हाय, कितना पीछे रह गया ये इंसान



क्यों लिख दूं बोल, आखिर क्या बदलने वाला है

सरेआम नारी के तन से खींचा तूने दुशाला है

महंगाई महंगी, भूख सस्ती, आदमी की कीमत नहीं

बोल कैसे भाग निकला भोपाल कांड का हैवान

आम आदमी बन गया रे बेहद आम

निज स्वार्थ की सूली पर झूल रहा सम्मान

हां, स्वाधीनता हाथों में, बस चल बसा स्वाभिमान



कलम बोली, तू चुपकर, लिख, लिख लिखती जा

घिस मुझको, घिसघिस कर ही कुंदन बन पाएगा

हथियार बना मुझे, देख समय पलटकर आएगा

संघर्ष की बेदी पर ही आजादी का हार मिला

माटी पर कुर्बान जवानों को अनमोल प्यार मिला

निराशा, हिंसा, घात, प्रतिघात से

कुछ नहीं बन पाएगा

तीखे शब्दों के उजास से

इक दिन नया सवेरा खिलखिलाएगा 

पहले तड़पाया, फिर सिर में गोली मारी

अपहृत पत्रकार की निर्ममतापूर्वक हत्या : बिहार सरकार के एक मंत्री पर उठी उंगली : हत्या के विरोध में बंद,  मौन जुलूस निकाला : कुशीनगर : अपहृत पत्रकार तेजबहादुर की लाश शनिवार को नौरंगिया (बिहार) थाना क्षेत्र के दिल्ली कैम्प के पास से बरामद हुई है. पत्रकार को क्रूरतापूर्वक यातना देने के बाद हत्यारों ने सिर में गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था.
बिहार पुलिस ने रेलवे ट्रैक पर दो टुकड़ों में पड़ी लाश को पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया है. मृतक के परिजनों ने प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की तरफ भी उंगलियां उठाई हैं. इस हत्या के विरोध में रामकोला एवं कप्तानगंज कस्बा बंद रहा तथा मौन जुलूस निकालकर लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया. गौरतलब है कि गुरुवार की शाम को लगभग सात बजे नेबुआ नौरंगिया थाना क्षेत्र के गांव रायपुर फूलवरिया के पास से सशस्त्र अपराधियों ने अगवा कर लिया था. उत्तर प्रदेश की पुलिस हाथ-पांव मारती रही लेकिन अपहृत पत्रकार को ढूंढ नहीं पाई.
शनिवार को कुछ बारातियों ने दो टुकड़ों में कटी एक लाश को दिल्ली कैम्प के पास रेलवे ट्रैक पर पड़ा देखा. इसकी सूचना बारातियों ने पुलिस को दी. बाद में इस लाश की पहचान अपहृत पत्रकार तेजबहादुर के रूप में हुई. लाश मिलने की सूचना जंगल में आग की तरह फैल गई और वहां उत्तर प्रदेश एवं बिहार पुलिस के साथ-साथ भारी संख्या में आम नागरिक एवं पत्रकार पहुंच गए. पत्रकार के परिजनों के आने के बाद पूरा माहौल गमगीन हो गया. परिजनों की चीत्कार से उपस्थित लोगों में से अधिकांश की आंखें नम हो गईं. मौके पर पहुंचे अपर पुलिस अधीक्षक को भी परिजनों एवं अखबारवालों के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा. कुछ लोगों ने पुलिस के विरुद्ध नारेबाजी भी की.

कब धरे जाएंगे पत्रकार अवनीश के हत्यारे?

यूपी के बस्ती जिले में 'आज' अखबार के पत्रकार अवनीश कुमार श्रीवास्तव के हत्यारे अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं. हत्या के दो हफ्ते बीत गए पर पुलिस कोई खुलासा नहीं कर सकी. पुलिस के इस रवैये से अवनीश के परिजन व पत्रकार खफा है. बस्ती जिले के पत्रकारों ने शनिवार को जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के बैनर तले हत्यारोपियों की जल्द गिरफ्तारी की मांग को लेकर मौन जुलूस निकाला.
बाद में पत्रकार पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) से मिले और उन्हें ज्ञापन दिया. डीआईजी अभिमन्यु त्रिपाठी ने पत्रकारों को भरोसा दिया कि इस मामले में कार्यवाही जारी है. घटना को अज्ञात हत्यारों ने अंजाम दिया है, इसलिये समय लग रहा है. जल्द ही घटना का पर्दाफाश होगा और हत्यारे गिरफ्त में होंगे. पत्रकारों ने पुलिस को चेतावनी दी है कि 15 दिन के भीतर पत्रकार अवनीश के हत्‍यारे गिरफ्तार नहीं किए गए तो आमरण अनशन शुरू कर दिया जाएगा.
गौरतलब है कि अवनीश श्रीवास्तव की हत्या 26 जून को शहर के रौता चौराहा के पास पुलिस बूथ के निकट गोली मारकर कर दी गयी थी. तभी से जिले भर के पत्रकार आंदोलित हैं, पर पुलिस अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पायी है.  न ही पुलिस ने रौता पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की है, जिनकी लापरवाही के कारण पुलिस कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी है. कांग्रेस सांसद तथा उत्‍तर प्रदेश कांगेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने अवनीश की हत्‍या की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है. उन्‍होंने सीबीआई जांच के लिए प्रदेश सरकार से भारत सरकार को संस्तुति भेजने की मांग की.
जुलूस व ज्ञापन देने वालों में जयन्त कुमार मिश्र, दिनेश चन्द्र पाण्डेय, मजहर आजाद, संदीप गोयल, कौशल किशोर श्रीवास्तव, विपिन बिहारी त्रिपाठी, मजहर हुसैन, विनोद उपाध्याय, प्रदीप चन्द्र पाण्डेय, राजेश मिश्र, सज्जाद रिज्वी, मनीष श्रीवास्तव, तनवीर आलम, राकेश चन्द्र श्रीवास्तव‘बिन्नू’, नीरज त्रिपाठी, प्रमोद शाह, प्रमोद श्रीवास्तव, जीशान हैदर रिज्वी, आमोद उपाध्याय, जयप्रकाश उपाध्याय, रमेष पाण्डेय, अनिल श्रीवास्तव, धनन्जय, मोहम्मद इब्राहीम, मोहित श्रीवास्तव, स्कन्द शुक्ला, प्रकाश चन्द्र गुप्ता आदि थे.

पत्रकारिता के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियां बताने का प्रयास

ब्लाग के बारे में किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने या फिर लेख प्रकाशित करवाने के लिए संपर्क करे। अगर ब्लाग में कुछ ऐसा लिखा है जिसे लेकर आप सहमत नहीं है या फिर इससे हटकर जानकारी रखते हैं तो इसके बारे में भी हमे जरूर बताए। हम बेझिझक आपकी बात व सुझाव प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। 

जर्नालिस्ट हब संपादक- हरिदत्त जोशी
 दूरभाष_-09855285033, 01645001348 / ईमेल करे -haridutt08@gmail.com या फिर पत्र भेजेः जर्नालिस्ट हब,, कार्यालय  पंजाब का सच दैनिक सांध्य अखबार, ननचहल मार्किट, नजदीक टीचर होम, मैहणा रोड़ बठिंडा।   

रविवार, 11 जुलाई 2010

बेशकीमती गाड़ियां व प्रेस लेबल

शहर में बहुसंख्या में घूम रही हैं बेशकीमती गाड़ियां, जिन पर लिखा है प्रेस। हैरत की बात तो यह है कि संवाददाता वर्ग खुद भी असमंजस में है कि आखिर इतनी बेशकीमती गाड़ियां आखिर किस मीडिया ग्रुप की हैं। शीशों पर आल इंडिया परमिट की तरह प्रेस का लेबल चस्पाकर घूमने वाली गाड़ियां, मीडिया में काम करने वालों के लिए कई सालों से अनसुलझी पहेली की तरह हैं। जी हां, शहर में घूम रही हैं ऐसी दर्जनों बेशकीमती गाड़ियां, जिन पर लिखा है प्रेस, और कोई नहीं जानता प्रेस का लेबल लगा घूम रही इन बेशकीमती गाड़ियों के काले शीशों के उस पार आखिर है कौन। यह कौन पिछले कई सालों से मीडिया कर्मियों के लिए गणित का सवाल बन चुका है।

सूत्र बताते हैं कि मीडिया जगत तो इस लिए स्तम्ब है, क्योंकि मीडिया कर्मी अच्छी तरह जानते हैं, बठिंडा के इक्का दुक्का मीडियाकर्मियों को छोड़कर बठिंडा के किसी भी मीडिया कर्मी के पास ऐसे वाहन नहीं, जिनकी कीमत सात आठ लाख के आंकड़ों को पार करती हो। इस तरह कुछ अज्ञात लोगों का प्रेस लेवल लगाकर घूमना, शहर वासियों के लिए भी किसी मुसीबत का कारण बन सकता है, क्योंकि ट्रैफिक पुलिस कर्मी गाड़ी पर प्रेस लिखा देकर वाहन को बेलगाम घूमने की आजादी दे देते हैं। डर कहीं यही आजादी, किसी दिन मुसीबत न बन जाए। याद रहे कि काफी महीने पहले दिल्ली के समीप पुलिस ने एक आतंकवादियों को जानकारी मुहैया करवाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया था, जो खुद को संवाददाता बताकर शहर में संवेदनशील इलाकों में बड़े आराम से आ जा सकता है।

अगर ऐसा दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में हो सकता है तो बठिंडे जैसे महानगर में क्यों नहीं, क्या हम सांप निकलने के बाद लकीर को पीटने की आदत त्याग के लिए तैयार नहीं। क्या हम उठते हुए धूएं को देखकर कुछ नहीं करना चाहते, जब तक वो भयानक आग में न तब्दील हो जाए। पिछले दिनों स्थानीय एक मल्टीप्लेक्स में पहुंचे फिल्म अभिनेता जिम्मी शेरगिल ने कहा था कि पायरेसी से एकत्र होने वाला पैसा आतंकवाद को जाता है, क्या प्रेस का लेबल रेवड़ियों की तरह बांटना किसी पायरेसी से कम है। क्या पता कोई प्रेस का लेबल लगाकर काले शीशों के पीछे कुछ काले कारनामों की संरचना कर रहा हो। काला धन हमेशा काले कारोबार में इस्तेमाल होता है, और काले धन ही किसी भी देश के विनाश के लिए कारण बनता है। 

आज से कुछ साल पहले तत्कालीन डीआईजी ने प्रेस वालों से उनके वाहनों के नम्बर मांगे थे। मीडिया कर्मियों ने बड़े उत्साह के साथ अपने वाहनों के नम्बर उक्त विभाग को लिखकर भेजे थे, शायद तब भी मीडिया कर्मी इस समस्या को लेकर चिंतित थे। लेकिन वो योजना पूरी तरह लागू न हो सकी, कुछ मीडिया कर्मियों की बजाय से। मीडिया कर्मियों की ओर से भेजी गई सूचियों को देखने के बाद यकीनन तत्कालीन शीर्ष पदस्थ पुलिस अधिकारी हैरत में एक बार तो जरूर पड़ा होगा, यह देखकर कि जो सूची आई है, उस में ज्यादातर वाहन दो पहिया है, और उनकी गाड़ी के आगे से गुजरने वाली गाड़ियां तो बेशकीमती होती हैं, जिन पर लिखा होता है प्रेस।

इसमें भी कोई दो राय नहीं, मीडिया में काम करने वाले कुछ लोगों ने अपने रिश्तेदारों को भी प्रेस लिखवाकर घूमने का परमिट दे रखा है। कुछ ऐसे ही मीडिया कर्मी मीडिया के बुद्धजीवियों के लिए समस्या बने हुए हैं। भले ही उनकी मात्रा मीडिया कम है, लेकिन मीडिया का अक्स बिगाड़ने में वो काफी कारगार सिद्ध हो रहे हैं।
 मैं नितिन सिंगला, साथी कुलवंत हैप्पी के साथ गुडईवनिंग पंजाब का सच बठिंडा।

एक ओर नए प्रेस क्लब के गठन को लेकर शुरू हुई पहल

बठिंडा। प्रेस क्लब के गठन की घोषणा के बाद आक्रोशित पत्रकारों ने अब नया प्रेस क्लब बनाने की घोषणा कर दी है। इस बाबत कुछ स्थानीय अखबारों के साथ बडे़ अखबारों के प्रतिनिधि एक मंच पर इकट्ठा हो रहे हैं। इस तरह का संकेत शनिवार की रात शिअद की तरफ से एक होटल में आयोजित सुखवीर बादल के जन्मदिन समागम में मिले हैं। इस समागम में एक तरफ जहां प्रेस क्लब बठिंडा के प्रधान एसपी शर्मा का सम्मान किया जा रहा था वही दूसरी तरफ दैनिक ताजे अखबार के मुख्य संपादक यशपाल वर्मा ने कहा कि प्रेस क्लब का गठन करने वाले लोगों ने पत्रकारों के एक वर्ग को पूरी तरह से नजरअंदाज करके रखा है। इसमें प्रेस क्लब के प्रधान एसपी शर्मा और स्थानीय कमेटी ने लोकल अखबारों को पूरी तरह से नजरअंदाज करके रखा है। इसमें तो यहां तक कहा है कि लोकल पेपरों को  प्रेस क्लब में शामिल नहीं किया जाएगा जो पत्रकारिता व प्रेस क्लब के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि युवा पत्रकारों को भी इस क्लब से दूर रखा गया है, इसके चलते वह नए प्रेस क्लब का गठन सभी पत्रकारों के सहयोग से करेंगे। इसमें युवाओं को तो प्राथमिकता दी जाएगी साथ ही सभी अखबारों को प्रतिनिधित्व मिलेगा। फिलहाल उनकी इस मुहिम को कुछ राष्ट्रीय अखबारों के प्रतिनिधियों ने भी समथर्न देने की घोषणा कर दी है। इसमें पंजाब केसरी के दिनेश शर्मा, विजय वर्मा सहित एक दजर्न पत्रकारों के नाम लिए जा रहे हैं। उक्त सभी पत्रकार वह है जिन्हे प्रेस क्लब की गतिविधियों से अलग रखा गया।   इस स्थिति में बठिंडा में सर्वसम्मति से प्रेस क्लब गठित करने के प्रयासों को तो धक्का लगा ही है वही प्रेस क्लब की निष्पक्ष कारगुजारी के दावे भी खोखले साबित हुए है।

प्रेस क्लब की अपनी इमारत बनाने के लिए सरकार से जमीन लेने की प्रक्रिया

बठिंडा। बठिंडा प्रेस क्लब की अपनी इमारत बनाने के लिए सरकार से जमीन लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके लिए नगर निगम मेयर बलजीत सिंह बीडबहिमण और शिअद के बठिंडा विधानसभा इंचार्ज सरुपचंद सिंगला सहयोग करेंगे। इसमें दोनों नेता उपमुख्यमंत्री सुखवीर बादल के पास प्रस्ताव भेजकर जमीनी स्तर पर काम करवाने को कहेंगे। इसका खुलासा विगत दिवस शनिवार को सुखवीर बादल के जन्मदिन पर आयोजित विशेष समागम में किया गया। सरूप सिंगला की तरफ से आयोजित इस समागम में पत्रकारों ने प्रेस क्लब के लिए स्थान देने की मांग की थी। इस समागम में विभिन्न अखबारों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस बाबत पत्रकार श्रीधर राजू ने सरूप सिगंला से जमीन देने की मांग की थी। जिसमें मेयर व श्री सिंगला ने आश्वासन दिया कि इस प्रक्रिया में दोनों प्रेस क्लब के साथ पूरा सहयोग करेंगे। गौरतलब है कि प्रेस क्लब को स्थान दिलवाने के लिए मुहिम लंबे समय से चल रही है। इस बाबत शहर के बीचों बीच स्थित खेल स्टेडियम के पास बने पंचायती भवन की इमारत के इलावा सिविल लाईन में किसी स्थान पर जमीन लेने के प्रयास किए जा रहे हैं।  समागम में प्रेस क्लब के प्रधान एसपी शर्मा को शिअद की तरफ से सिरोपा देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मेयर बीडहिमण ने कहा कि पत्रकारों के एकजुट होने से जहां पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा हो सकेगी वही पत्रकारों को एकमंच पर इकट्ठा कर सकरात्मक पहल को बल मिलेगा।     

शनिवार, 10 जुलाई 2010

पत्रकार बन वसूली करने वालों का मुंह हुआ काला

मेरठ : खुद को पत्रकार बता एक पार्षद के यहां वसूली करने पहुंचे दो युवकों की जमकर पिटाई की गई और थाने पर भी मुंह काला कर पीटा गया। पीडि़त एक महिला ने भी उनकी चप्पलों से धुनाई की। उनका एक साथी भागने में सफल रहा। दोनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। इन युवकों के नाम आमिल पुत्र इरफान निवासी जैदी फार्म और वरुण कौशिक पुत्र मदन मोहन शर्मा हैं। दोनों ने खुद को कथित रूप से एक स्थानीय न्यूज चैनल से जुड़ा बताया। वार्ड 32 से पार्षद साबुन गोदाम निवासी मुकेश सिंघल को पिछले कई दिनों से पंकज अग्रवाल नाम का युवक फोन कर रहा था।
मुकेश प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं। बकौल मुकेश पंकज खुद को एक स्थानीय न्यूज चैनल का सिटी चीफ बताते हुए उन्हें धमका रहा था कि अगर नगर निगम के ठेकों के काम चाहिए तो उन्हें हर माह पांच हजार रुपये देने होंगे। अगर पैसा नहीं दिया तो वे चैनल पर न्यूज चलाकर उनकी छवि खराब कर देंगे और उन्हें निगम से कोई काम नहीं मिलेगा। पार्षद ने उन्हें बहाने से बुधवार को लेन देन की बावत वार्ता के लिए हरि मंडप के सामने अपने साबुन गोदाम स्थित कार्यालय पर बुला लिया। पंकज अग्रवाल के अलावा आमिल और वरुण वहां पहुंच गए और बातचीत करने लगे।
अंतत: पांच हजार की बजाय दो हजार में मामला पट गया और तय हुआ कि हर माह यह पैसा दे दिया जाएगा। इस पूरी बातचीत को पार्षद ने गुपचुप तरीके से कैमरे में रिकार्ड करा लिया। इसी बीच पार्षद के साथी मनोज शर्मा, संजीव त्यागी, सुधीर शर्मा, अनुराग मिश्रा आ गए और आमिल और वरुण को दबोच लिया जबकि पंकज भागने में सफल हो गया। दोनों की कमरे में जमकर पिटाई की गई। वहां पहुंचे अन्य लोगों ने भी हाथ साफ किये। बाद में दोनों को टीपी नगर थाने लाया गया और वहां पर मुंह काला कर उनकी जमकर पिटाई की गई।
महिला ने चप्पलों से पीटा : यही तीनों युवक खुद को पत्रकार बताकर चंद्रलोक निवासी अलका गोयल पत्‍‌नी टीसी गोयल को मकान खाली करने के लिए धमका रहे थे। तीनों ने सीधे घर पहुंचकर तो धमकाया ही, पंकज ने महिला के पुत्र मोहित को फोन भी किया था कि अगर मकान खाली नहीं किया तो जान से मार दिया जायेगा। महिला ने इस बावत टीपीनगर थाने पर तहरीर दी थी। जिस वक्त दोनों की थाने पर मुंह काला कर पिटाई हो रही थी तभी महिला ने उन्हें पहचान लिया और उसने भी चप्पलों से उनकी जमकर खबर ली। पार्षद मुकेश सिंघल की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। (साभार : दैनिक जागरण)

बठिंडा प्रेस क्लब का सदस्यता अभियान शुरु, १७ तक भर सकेंगे फा्र्म

तीन साल की मेहनत, कुछ लोगों के समपर्ण का नतीजा निकला कि अखिरकार बठिंडा प्रेस क्लब की सदस्यता को लेकर मुहिम शुरू हो गई। इस बाबत बठिंडा प्रेस क्लब के प्रधान एसपी शर्मा की अध्यक्षता में सरकट हाऊस में बैठक आयोजित की गई। इसमें सभी अखबारों के ब्यूरो चीफ शामिल हुए। बैठक में सर्वसम्मित से फैसला लिया गया कि क्लब की सदस्यता अभियान शुरू किया जाए। इसमें प्रति सदस्य सौ रुपया तय किया गया जबकि अभियान १७ जुलाई तक पूरा करने को कहा गया। इसके बाद कारजकारणी का गठन करने के लिए आम बैठक आयोजित की जाएगी। इस बाबत सभी सदस्यों को सूचित किया जाएगा। बैठक में सदस्यता को लेकर एक कार्य समिति का भी गठन किया गया। इसमें प्रमुख तौर पर दैनिक अजीत के हुकमचंद शर्मा, दैनिक भास्कर के रितेश श्रीवास्तव, दैनिक जागरण के श्रीधर राजू, पंजाबी ट्रिब्यून के चरणजीत सिंह भुल्लर व हिंदुस्तान टाईम से हरजिंदर सिद्धू को जिम्मेवारी दी गई। बैठक में संविधान व कार्यक्षेत्र को लेकर भी चर्चा की गई। बैठक में प्रमुख तौर पर पंजाब केसरी से बलविंदर शर्मा, दैनिक अमर उजाला से हरिदत्त जोशी, चडदी कलां से बख्तौर सिंह , देश सेवक से बीएस भुल्लर, स्पोकसमैन से सुखजिंदर मान ने भी हिस्सा लिया।  प्रधान एसपी शर्मा ने बताया कि सदस्यता के लिए फार्म सभी अखबारों के इंचार्ज को उपलब्ध करवाए गए है जबकि बीएस भुल्लर से भी फार्म हासिल किए जा सकते हैं। उन्होंने सभी पत्रकार बंधुओं से १७ जुलाई तक सदस्यता फार्म श्री भुल्लर के पास जमा करवाने की अपील की है ताकि अगली प्रक्रिया शुरू की जा सके।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

पत्रकारिता के असल मायने गुम हो रहे हैं

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के लिए जहां पहले अनुभव व शिक्षा को महत्व दिया जाता था लेकिन व्यवसायिक दृष्टि से देखी जाने वाले इलेक्ट्रोनिक व प्रींट मीडिया में अनुभव व शिक्षा दूर होती जा रही है। विभिन्न संस्थानों व ग्रुप के लिए अब विजिनेंस देने वाली जमात सवोर्परि हो गई है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि पिछले कुछ साल से इलेक्ट्रोनिक मीडिया में जिस तरह से नए चैनलों की बहार आ गई है उसने भी अनुभवी पत्रकारों का अकाल डाल दिया है। हर चैनल व अखबार अब व्यवसायिक पक्ष से भी मजबूत होना चाहता है इसके लिए पत्रकारों पर खबरों से ज्यादा विज्ञापनों का बोझ डाल दिया जाता है। इसके चलते भी अब ऐसे लोगों को तरजीह दी जाती है जो स्थानीय स्तर पर होने वाले खर्च के साथ कुछ कमाई करके दे सके। फिलहाल इस दौड़ में जहां पत्रकारिता के असल मायने गुम हो रहे हैं वही पीली पत्रकारिता को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। कुछ लोग कहते है कि पत्रकारिता बिक रही है पर सच यह है कि पत्रकारिता नहीं बिक रही बिल्क, बिक रहे हैं पत्रकार। ठीक उसी तरह जैसे कतिपय भ्रष्ट शासक-प्रशासक पहले और अब भी बिकते रहे, जयचंद-मीर जाफर देश को बेचने की कोशिश करते रहे हैं, गद्दारी करते रहे हैं। किन्तु देश अपनी जगह कायम रहा। नींव पर पड़ी चोटों से लहूलुहान तो यह होता रहा है किन्तु इसका महान अस्तित्व हमेशा कायम रहा है। पत्रकारिता में प्रविष्ट काले भेडिय़ों ने इसकी नींव पर कुठाराघात किया, चौराहे पर प्रबंधकों के साथ मिलकर कुछ पत्रकार अपनी बोलियां लगवाते रहे, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हर किसी से सौदेबाजी करते रहे, हाथ में थामी कलमें बेचीं, अखबार के पन्ने बेचे, टेलीविजन पर झूठ को सच कहा तो सच को झूठ दिखाने की कोशिश की, किसी को महिमामंडित किया तो किसी के चेहरे पर कालिख पोती, इसे पेशा बनाया, धंधा बनाया, चाटुकारिता की नई परंपरा शुरू की है। बावजूद इसके, पत्रकारिता अपनी जगह कायम है, पत्रकार अवश्य बिकते रहे।  पंजाब में खासकर मालवा जैसे पिछडे़ श्रेत्र में तो यह स्थित काफी चिंताजनक है। प्रशासन के साथ विभिन्न लोगों की  आए दिन शिकायते आ रही है कि फला अखबार या फिर मीडिया का प्रतिनिधि उनसे खबर की एवज मे पैसे की मांग करता है। हालात यह है कि कुछ प्रशासकीय दफ्तरों जहां खासकर नियम कायदों को तोड़कर काम होता है ने कुछ पत्रकारों के लिए हफ्ता तय कर रखा है जो माह के पहले हफ्ते एक मुस्त राशि वहां से लेकर अपनी जेब में डाल लेते हैं। इसके बदले उक्त लोगों कोइन विभागों के मामले में आंख मूंदकर बैठने के लिए कहा जाता है। इसमें सिविल अस्पताल के कुछ डाक्टर, तहसील दफ्तर, जिला ट्रांसपोर्ट दफ्तर शामिल है। पहले तो लाटरी पर सट्टा लगाने वाले लोगों से भी हफ्ता वसूली होती थी लेकिन अब उक्त धंधा ही बंद हो गया है जिसके चलते हफ्ता वसूली करने वाले लोगों के पास भी मंदा आ गया है। फिलहाल इस तरह की स्थित के बारे में यहां जिक्र करने का मेरा मकसद किसी पत्रकार बंधु को टारगेट करना नहीं बलि्क वतर्मान में पैदा हो रहे हालात के बारे में जानकारी देना है। इस तरह की कारगुजारी से पूरा पत्रकार वर्ग बदनामी का दंश झेलता है। फिलहाल कुछ समय से जिस तरह कुछ लोगों के लिए पत्रकारिता पैसे ऐठने का जरिया बन रही है उसे रोकना जरूरी है। इसके लिए कम से कम किसी स्तर पर पहल तो करनी होगी तभी पंजाब की पत्रकारिता और उसके असूल जिंदा रह सकेंगे। मुझे याद है कि मेरे पास एक मेडिकल का काम करने वाला सख्श आया, उसने कहा कि वह पत्रकार बनना चाहता है, मैने पूछा क्यों? तो उसने बताया कि  मेडिकल के काम में कई बार उलट फेर करना पड़ता है कई दवाईयां दो नंबर में लानी पड़ती है। अब गाडी़ में प्रेस लिख लेगें तो दो फायदे हो जाएंगे, एक कोई पुलिसवाला या ड्रग अफसर उसकी गाडी़ नहीं रोकेगा वही लोगों में पत्रकार नाम को दबका भी चलने लगेगा। उक्त महोदय ने मुझे पत्रकार बनाने व पहचान पत्र जारी करने की एवज में कुछ पैसे देने तक की आफर कर दी, अब अब सुगमता से समझ सकते हैं कि यहां पत्रकारिता किस मकसद के लिए हासिल की जाती है। फिलहाल मैं विभिन्न सामाचार पत्रों के संपादकों से एक गुजारिश जरूर करूगा कि पत्रकार जिसे बनाना है बनांए लेकिन समाज के ऐसे वर्ग से जरूर दूरी बनाए जो इस पेशे को समाज और कानून के अहित के लिए अपनाना चाहते हैं। अगर इसे नहीं रोका गया तो आने वाले समय में पत्रकारों की जमात को बदनामों की श्रेणी में देखा जाएगा।
हरिदत्त जोशी 

अमर उजाला के कई ब्यूरो चीफ बदले गए

जनपक्ष' मैग्जीन के बंद होने की सूचना : जौनपुर से बनारस, फिर लखनऊ, फिर बनारस और अब फिर जौनपुर. यह यात्रा की है अमर उजाला के पत्रकार विनोद पांडेय ने. जौनपुर में अभी तक ब्यूरो चीफ के रूप में कार्यरत अखिलानंद को बलिया का प्रभारी बना दिया गया है. कुछ अन्य ब्यूरो चीफ भी बदले गए हैं. मिथिलेश दुबे को चंदौली का प्रभारी बनाया गया है. चंदौली के अनूप को बनारस भेज दिया गया है.
एक अन्य सूचना शिमला से है. हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली मैग्जीन 'जनपक्ष' के बंद होने की खबर है. बताया जा रहा है कि आर्थिक तंगी के कारण मैग्जीन का लगातार प्रकाशन संभव नहीं हो सका, इसलिए इसे बंद करना पड़ा.

भास्कर की लांचिंग पर छाए काले बादल

 संजय अग्रवाल कोर्ट से स्टे लाए : आरएनआई में आपत्ति खारिज हो गई थी : आरएनआई के खिलाफ कोर्ट गए थे संजय : दैनिक भास्कर, रांची व जमशेदपुर में लांचिंग पर फिर काले बादल मंडराने लगे हैं. अभी-अभी खबर मिली है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आरएनआई के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है जिसमें आरएनआई ने भास्कर की रांची व जमशेदपुर में लांचिंग को ओके कर दिया था और लांचिंग रोकने संबंधी आब्जेक्शन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि पीआरबी एक्ट में उल्लखित आधारों पर लांचिंग रोकने संबंधी कोई नियम नहीं है.
सूत्रों के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसकी कापी अभी तक मिल नहीं पाई है और यह भी पता नहीं चल पाया कि आदेश में मूलतः क्या कहा गया है. पर जो खबरें छन कर आ रही हैं उनके मुताबिक भास्कर के मालिकों में से एक संजय अग्रवाल के आब्जेक्शन को निरस्त करने संबंधी आरएनआई के आदेश को हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक दिया है. इस तरह से भास्कर की रांची व जमशेदपुर में लांचिंग का मामला टल सकता है, लटक सकता है, लंबा खिंच सकता है या रद भी हो सकता है.
ज्ञात हो कि भास्कर के मालिकों में से एक, संजय अग्रवाल, जिन्हें यूपी व उत्तराखंड इलाके में भास्कर के संचालन का सर्वाधिकार प्राप्त है, ने रमेश चंद्र अग्रवाल और उनके पुत्रों की कंपनी डीबी कार्प के बिहार व झारखंड में दैनिक भास्कर लांच करने संबंधी प्रयास को चुनौती दी थी. पटना व रांची समेत कई जिलों में, जहां डीबी कार्प ने भास्कर निकालने के लिए डिक्लयरेशन फाइल किया था, वहां वहां संजय अग्रवाल ने यह कहते हुए आब्जेक्शन फाइल किया था कि भास्कर ब्रांड के कई मालिक हैं और बिना सभी की सहमति के डीबी कार्प को किसी नई जगह से अखबार लांच करने का अधिकार नहीं है.
संजय के आब्जेक्शन पर संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों ने पूरे मामले को आरएनआई के हवाले कर दिया था. आरएनआई ने मामले को लटकाये रखा और एक तरह से डीबी कार्प की तरफदारी करते हुए उन्हें सुझाव दिया था कि वे लोग बिहार - झारखंड के किसी भी जिले से गुपचुप ढंग से डिक्लयरेशन हासिल कर लें व उसी आधार पर हर जगह से प्रकाशन शुरू कर दें. जब इसकी भनक संजय अग्रवाल को लगी तो उन्होंने आरएनआई में जाकर विरोध दर्ज कराया और इस आशंका से सभी को अवगत कराया कि डीबी कार्प के लोग बिहार झारखंड के किसी भी जिले से गुपचुप ढंग से डिक्लयरेशन हासिल कर अखबार का प्रकाशन शुरू कर सकते हैं, जो गलत होगा.
बताया जाता है कि आरएनआई ने जो फैसला सुनाया वह डीबी कार्प के अनुकूल था. इस फैसले में संजय अग्रवाल की आपत्तियों को पीआरबी एक्ट का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया था. तब संजय अग्रवाल आरएनआई के खिलाफ हाईकोर्ट गए और अब सूचना है कि हाईकोर्ट ने आरएनआई के आदेश पर स्टे दे दिया है. इस पूरे मामले पर संजय अग्रवाल का कहना है कि उनके हाथ में अभी तक कोई आदेश आया नहीं है इसलिए वह आन रिकार्ड कुछ कहने की स्थिति में नहीं है. कोर्ट के आदेश की कापी देखने के बाद ही वे कुछ कहने की स्थिति में होंगे. भास्कर के आंतरिक झगड़ों से संबंधित अन्य खबरें पढ़ने के लिए नीचे, कमेंट बाक्स के ठीक नीचे, दिए गए शीर्षकों पर क्लिक करें.
-सौ. भडास फोर मीडिया

नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ ने दिया विभागीय आयुक्त को ज्ञापन

 न्याय नहीं मिला तो आंदोलन जारी रहेगा :  दोषी पुलिसकर्मियों के निलंबन का मांग : नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के पदाधिकारी, सदस्यों व गैर पत्रकारों ने 5 जुलाई को भारतबंद का कवरेज कर रहे मीडियाकर्मियों पर लाठीचार्ज के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने की मांग को लेकर विभागीय आयुक्त कार्यालय के पास विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन का निर्णय मंगलवार को ही एक बैठक में लिया गया था। सुबह 12:30 बजे प्रदर्शन के दौरान भारी बारिश हो रही थी।
लेकिन मूसलाधार बारिश में भी आक्रोशित मीडियाकर्मियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। मीडियाकर्मियों ने काले फीते लगाकर भीगते हुए विरोध प्रदर्शन किया। मीडियाकर्मियों के गुस्से को पहले ही भांपकर पुलिस ने यहां तगड़ा बंदोबस्त किया था। एक डीसीपी, चार एसीपी समेत अनेक पुलिसकर्मी यहां चौकस थे। पुलिसकर्मियों की भीड़ मीडियाकर्मियों से ज्यादा नजर आई। प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष शिरीष बोरकर ने कहा कि पुलिस ने मीडियाकर्मियों पर जो हमला किया है, वह नहीं सहा जाएगा। जब तक दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित नहीं किया जाता, तब तक हमारा आंदोलन ऐसे ही जारी रहेगा। '
'दैनिक 1857' प्रधान संपादक एस.एन. विनोद ने कहा कि पुलिस ने मीडियाकर्मियों पर तब लाठीचार्ज किया जब वे अपनी सच्ची ड्यूटी निभा रहे थे। उनका यह बर्ताव गलत है। जब तक उन दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। मीडियाकर्मियों पर हुआ हमला किसी भी सूरत में नहीं सहा जा सकता है। मीडियाकर्मियों के विरोध प्रदर्शन को विदर्भ जनआंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने भी समर्थन दिया। उन्होंने प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि पुलिस का यह व्यवहार निंदनीय है। दूसरे के सुख-दु:ख की खबर से कवरेज कर सरकार को जगाने वाले मीडियाकर्मियों पर पुलिस का यह व्यवहार अत्याचार है। उन्होंने मीडिया द्वारा किए जा रहे विरोध को जायज ठहराते हुए कहा कि विदर्भ के आदिवासी और किसानों का समर्थन मीडियाकर्मियों के साथ हैं। दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए।
रिपब्लिकन पार्टी के पार्षद प्रकाश गजभिये ने कहा कि भारत बंद को पूरी जनता का समर्थन था। यह बंद किसी एक पार्टी ने नहीं कराया था। प्रदर्शन के बाद मीडियाकर्मियों का जत्था विभागीय आयुक्त गोपाला रेड्डी के कार्यालय के अंदर पहुंचा। नागपुर श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष शिरीष बोरकर ने भारतबंद के दौरान मीडियाकर्मियों पर हुए लाठी चार्ज के बारे में बताया। संघ के सचिव संजय लोखंडे ने लाठीचार्ज के दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबन का ज्ञापन दिया। विभागीय आयुक्त ने इस संबंध में जल्द ही कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार एस.एन. विनोद, महाराष्ट्र श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष यदु जोशी, तिलक पत्रकार भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रदीप मैत्र, वरिष्ठ पत्रकार जोसेफ राव, स्वदेश के संपादक विश्वास इंदुरकर, लोकशाही वार्ता के विनोद देशमुख, इंडिया न्यूज के विदर्भ ब्यूरो के प्रमुख राजेश तिवारी, दैनिक 1857 के चीफ रिपोर्टर संजय कुमार, नेशनल संदेश के सीनियर रिपोर्टर अभय यादव, राजेश बागड़े, सीएनईबी के कैमरामैन रविकांत कांबले, पुण्यनगरी के फोटो जर्नलिस्ट प्रशिक डोंगरे, संजय लचुरिया, देवेश व्यास, दैनिक भास्कर के छोटू वैतागे, विनोद झाडे, लोकशाही वार्ता के जीवक गजभिये, स्वदेश के सौरभ,लोकसत्ता के ज्योति तिरपुडे, स्वदेश के धीरज पाटिल, लोकमत के अविनाश महाजन, नवभारत के अभिषेक तिवारी, लोकमत समाचार के जगदीश जोशी, तरुण भारत के दिलीप दुपारे, टाइम्स ऑफ इंडिया के फोटो जर्नलिस्ट रंजीत देशमुख और सुदर्शन समेत नागपुर के मीडिया संस्थानों के अनेक पत्रकार और फोटो जर्नलिस्ट उपस्थित थे।
सौजन्य-भडा़स फोर मीडिया. काम  

बुधवार, 7 जुलाई 2010

About journalistic reporters


Reporter

This article is about journalistic reporters. 

Journalism:-A reporter is a type of journalist who researches and presents information in certain types of mass media.

Reporters gather their information in a variety of ways, including tips, press releases, sources (those with newsworthy information) and witnessing events. They perform research through interviews, public records, and other sources. The information-gathering part of the job is sometimes called "reporting" as distinct from the production part of the job, such as writing articles. Reporters generally split their time between working in a newsroom and going out to witness events or interview people.

Most reporters working for major news media outlets are assigned an area to focus on, called a beat or patch. They are encouraged to cultivate sources to improve their information gathering.


Reporters working for major the Western news media usually have a university or college degree. The degree is sometimes in journalism, but in most countries, that is generally not a requirement. When hiring reporters, editors tend to give much weight to the reporter's previous work (such as newspaper clippings), even when written for a student newspaper or as part of an internship.

In the United Kingdom, editors often require that prospective trainee reporters have completed the NCTJ (National College for the Training of Journalists) preliminary exams. After 18 months to two years on the job, trainees will take a second set of exams, known collectively as the NCE. Upon completion of the NCE, the candidate is considered a fully-qualified senior reporter and usually receives a (very) small pay raise. In the United States and Canada, there is no set requirement for a particular degree (and in the United States licensing journalists would be unconstitutional under the First Amendment), although almost all newspapers, wire services, television news, and radio news operations hire only college graduates and expect prior experience in journalism, either at a student publication or through an internship.

Although their work can also often make them into minor celebrities, most reporters in the United States, Canada[citation needed] and the United Kingdom earn relatively low salaries. It is common for a reporter fresh out of college working at a small newspaper to make $20,000 annually or less. According the 2007 Survey of Journalism/Mass communication[1] the median starting salaries for reporters in 2007 were identical to those in 2006:

$26,000 for a daily newspaper

$22,880,for a weekly newspaper

$23,400 in radio

$21,840 in broadcast television

$25,012 in cable television.

Despite many college students' perceptions that newspapers pay the most poorly, both daily and weekly newspapers are paying more than broadcast television, which actually pays the poorest of any mass communication industry or profession (advertising graduates got $26,988 and public relations graduates got $28,964 in 2006).[1]

The median salary for graduates in 2008 is £24,500 in UK.It is common for reporters to start with newspapers in small towns and take steps up the ladder to larger papers, though The New York Times has been known to hire reporters with only a few years' experience, if they have talent and expertise in particular areas. Many reporters also start as summer interns at large papers and then move to reporting jobs at medium sized papers. The same job prospects apply in the television reporting business, with reporters starting in small markets and moving into larger markets and thence to national news programs.